SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ REC8888888888A PHOTOFORU कुंदकुंद-वचनामृत -पद्यानुवाद : मिश्रीलाल जैन एडवोकेट, सिवनी कादण णमोक्कारं जिणवरवसहस्स वड्ढमाणस्स। दसणमगगं वॉच्छामी जहाकम्मं समासेण।। 1।। ऋषभ से महावीर तक, तीर्थंकरों की श्रृंखला है। संसृति को दिव्यध्वनि में, दे गए अनुपम-कला है।। कर नमन उनके चरण में, समय कागज पर लिखा है। महकता प्रज्ञा-सुमन, उनकी किरण पाकर जगा है।। दसणभट्टा भट्टा दंसणभट्टस्स णत्थि णिव्वाणं। सिझंति चरियभट्टा दंसणभट्टा ण सिझंति।। 2 ।। भ्रष्ट दर्शन से हुए निर्वाण उनकी कल्पना है। बीज के बिना वृक्ष, जननी बिना सूत किसने जना है।। स्खलित चारित्र-दर्शन-युक्त, मुक्ति-वरण की सम्भावना है। दिव्यध्वनि के रहस्य-साधक ! प्रथम तुमको जानना है।। जिणवयणमोसहमिणं विसयसुहविरेयणं अमिदभूदं । जर-मरण-वाहिहरणं खयकरणं सव्वदुक्खाणं ।। 3 ।। विषय-वासना की व्याधि को, दिव्य-ध्वनि औषधि है। शाश्वत-सुख उपलब्ध कराती, जरा-मृत्यु की इति है।। कर्म-कलुष सारे धुल जाते, आत्मा निर्मल होती। दर्शन-ज्ञान-चरित्र के तट, मिलते मुक्ति के मोती।। ** 004 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy