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________________ यूनानियों की युद्ध-प्रणाली से भलीभाँति परिचित था, उनके गुणों को भी जानता था और दोषों को भी। परिणामस्वरूप यूनानी सेना बुरीतरह पराजित हुई और स्वयं सम्राट् सेल्युकस बन्दी हुआ। उसकी याचना पर मौर्य-सम्राट् से सन्धि कर ली, जिसके अनुसार सम्पूर्ण पंजाब और सिन्ध पर ही नहीं, वरन् काबुल, हिरात, कन्दहार, बिलोचिस्तान, कम्बोज (बदख्शाँ) और पामीर पर मौर्य-सम्राट का अधिकार हो गया और भारत के भौगोलिक-सीमान्तों से भी यूनानी सत्ता तिरोहित हो गयी। इसप्रकार सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने पराक्रम एवं राजनीतिक सूझ-बूझ से अपनी स्वभाव-सिद्ध प्राकृतिक-सीमाओं से बद्ध प्राय: सम्पूर्ण भारत महादेश पर अपना एकछत्रआधिपत्य स्थापित कर लिया। इतनी पूर्णता के साथ समग्र भारतवर्ष पर आज पर्यन्त सम्भवतया अन्य किसी सम्राट् या एकराट् राज्यसत्ता का, मुगलों और अंग्रेजों का भी अधिकार नहीं हुआ। ___ इसी युद्ध के परिणामस्वरूप यवनराज का मेगस्थनीज़ नामक यूनानी राजदूत पाटलिपुत्र की राजसभा में ई०पू० 303 में आया, कुछ समय यहाँ रहा, और उसने मौर्य-साम्राज्य का विविध-विवरण लिखा, जो कि भारत के तत्कालीन इतिहास का बहुमूल्य-साधन बना। उसने भारतवर्ष के भूगोल, राजनीतिक विभागों, प्राचीन अनुश्रुतियों, धार्मिक विश्वासों एवं रीतिरिवाजों, जनता के उच्च-चरित्र एवं ईमानदारी, राजधानी की सुन्दरता, सुरक्षा एवं सुदृढ़ता, सम्राट की दिनचर्या एवं वैयक्तिक-चरित्र, उसकी न्यायप्रियता, राजनीतिकपटुता और प्रशासनकुशलता, विशाल चतुरंगिणी सेना, जिसमें चार लाख वीर सैनिक, नौ हजार हाथी तथा सहस्रों अश्व, रथ आदि थे और जिसका अनुशासन अत्युत्तम था, प्रजा के दार्शनिक (या पण्डित), शिल्पी, व्यवसायी एवं व्यापारी, व्याध एवं पशुपालक, सिपाही, राज्यकर्मचारी, गुप्तचर व निरीक्षक, मन्त्री एवं अमात्य आदि, सात वर्गों का, सेना के विभिन्न विभागों का, राजधानी एवं अन्य महानगरियों के नागरिक-प्रशासन के लिए छह विभिन्न समितियों का, इत्यादि अनेक उपयोगी-बातों का वर्णन किया है। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ था कि भारतवर्ष में दास-प्रथा का अभाव है। उसने यह भी लिखा है कि भारतवासी लेखनकला का विशेष आश्रय नहीं लेते और अपने धर्मशास्त्रों, अनुश्रुतियों तथा अन्य दैनिक-कार्यों में भी अधिकतर मौखिक-परम्परा एवं स्मृति पर ही निर्भर रहते हैं। प्रजा की जन्म-मृत्यु गणना का विवरण, विदेशियों के गमनागमन की जानकारी, नाप-तौल एवं बाजार का नियन्त्रण, अतिथिशालायें, धर्मशालायें, राजपथें आदि का संरक्षण सभी की उत्तम-व्यवस्था थी। देश का देशी एवं विदेशी व्यापार बहुत उन्नत था, बड़े-बड़े सेठ और सार्थवाह थे, नाना प्रकार के उद्योग-धन्धे थे, राजा और प्रजा दोनों ही अत्यन्त धन-वैभव सम्पन्न थे, विद्वानों का देश में आदर था। स्वयं सम्राट श्रमणों एवं ब्राह्मणों को राज-प्रासाद में आमन्त्रित करके अथवा उसके पास जाकर आवश्यक परामर्श लेते थे। कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' में सम्पूर्ण भारतवर्ष के रूप में चक्रवर्ती क्षेत्र की जो परिभाषा है, वही समुद्रपर्यन्त, आसेतु-हिमाचल भूखण्ड इस मौर्य-सम्राट प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2001 40 23
SR No.521366
Book TitlePrakrit Vidya 2001 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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