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मूलगुणों को भी संजाये हुए हैं। इससे वाचन - प्रयासों का मार्ग प्रशस्त होता है एवं वाचनप्रयास के लिये प्रामाणिकता का आधार भी तैयार होता है । '
हड़प्पा संस्कृति : मानव सभ्यता का प्राचीबतम झूलाघर
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इस बीच हड़प्पा के समान प्राचीन संस्कृति में जैन - पौराणिक - सन्दर्भों की समीक्षा करने के लिये तैयार होने में, कुछ पुस्तकों के अध्ययन ने मेरी बड़ी मदद की । इनमें से दो लेखक और उनका साहित्य विशेष उल्लेखनीय है । प्रथम स्थान पर 19वीं सदी के मध्य में ई० पोकॉक नामक अंग्रेज विद्वान् द्वारा लिखा गया ग्रंथ है 'भारत की यूनान में उपस्थिति' (इण्डिया इन ग्रीस ) " । इस ग्रंथ में वह यूनान देश के प्राचीन इतिहास की विसंगतियों का अध्ययन प्रस्तुत करते हुए सविस्तार बताता है कि प्रारम्भिक दौर में यूनान के मूल निवासी अत्यंत दीन-हीन अवस्था में निवास करते थे । उन्हें भारत से विस्थापित होकर आये श्रमणिक समुदाय के लोगों ने न सिर्फ सभ्यता का पाठ पढ़ाया, बल्कि उनको धार्मिक, पौराणिक और भाषायी पहचान भी प्रदान की । इसी श्रेणी के दूसरे विद्वान् हैं प्रसिद्ध ईसाई पादरी फादर हेरास । आप हड़प्पा की लिपि के प्रारम्भि अध्येताओं में से एक हैं। आपने भारत के साथ - साथ यूरोप और मध्य एशिया के विभिन्न देशों के प्राचीन इतिहास और वहाँ प्रचलित भाषाओं का गहन अध्ययन किया । और उस आधार पर हड़प्पा के लेखन और वहाँ प्रचलित भाषाओं का गहन अध्ययन किया । और उस आधार पर हड़प्पा के लेखन को समझने का प्रयास किया । अपने ग्रंथ 'स्टडीज इन प्रोटा - इण्डोमैडीटरेनियम कल्चर', ं में आपने प्राचीन इराक देश के सुमेरियन नामक सांस्कृतिक स्तर पर 'अन' नामक देवता का जिक्र किया है। जिसके विषय में वे विस्तार से वर्णन करते हैं। और वहाँ की खुदाई से प्राप्त उसकी कांस्य - प्रतिमाओं के फोटोग्राफ प्रस्तुत करते हुए उसकी समानता हड़प्पा की संस्कृति से उपलब्ध मूर्ति - शिल्पों और बाद के भारतीय ऐतिहासिक व पौराणिक व्यक्तियों में देखते हैं । सुमेरी 'अन' के खोफजे नामक स्थान से उत्खनित मूर्तियों की कुछ विशेषतायें उन्होंने गिनाई हैं, वे उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं अ. मूर्ति सदा नग्न अवस्था में प्रस्तुत की गई है।
ब. बहुधा मूर्ति के कन्धों पर बालों की दो लटें प्रदर्शित की जाती हैं, जबकि उसके सिर के शेष हिस्से में बालों का अभाव दर्शाया गया है।
स. मूर्ति के सिर पर चारों ओर चार फलकों वाला त्रिशूल दर्शाया जाता है ।
द. ताँबे की इन मूर्तियों में आँखें अलग से भरकर बनाई जाती हैं।
ह.. मूर्ति की कमर के चारों ओर रस्सी या पट्टीनुमा कोई चीज लिपटी हुई दिखाई जाती है।
फ. 'अन' की मूर्तियों के साथ उसी रूपाकार की, दो थोड़ी छोटी मूर्तियाँ भी मिलती हैं,
इनमें से कभी-कभी एक नारी मूर्ति भी होती है । 'अन' की इन मूर्तियों में, नग्नता, कन्धों तक फैली बालों की लटें, सिर के ऊपर स्थापित त्रिरत्न या एक ही समय में
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प्राकृतविद्या+अक्तूबर-दिसम्बर 2000