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________________ 3. इसी शोध-प्रबन्ध के मूल भाग की सन्धि 1 से 8 तक की अन्त्य पुष्पिकायें। 4. पज्जुण्णचरिउ, 1/6/11 5. वही, 1/3/9-101 6. वही, 1/4/6-81 7. वही, 1/5/41 8. वही, 157/1-71 9. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, भूमिका, पृ० 51-55। 10. पज्जुण्णचरिउ, 1/421 11. पज्जुण्णचरिउ 1/4/3-51 12. वही, 1/4/6-81 13. वही, 1/4/9-101 14. वही, 1/4/8। 15. वही, 1/4/8। 16. चालुक्य कुमारपाल, पृ0 1011 17. वही, पृ० 1021 18. वही 8-91 19-20.द्वयाश्रय काव्य 19/97-98 रक्षोभिर्पशुभिर्दामानिर्भरौलपिभिर्वत:, श्रीमतैः श्रीमतैश्चामं बल्लालो दर्पतोऽभ्यगात् ।। शमीवत्याभिजित्याभ्यां शैखावत्येन चैषते, कृत्यौ विभेद सामन्तौ नाम्ना विजयकृष्णकौ।। 21. वसन्त-विलास, 3/29 बल्लालमुल्लालयतिस्म खड्गं दण्डेन य: कन्दुकलीलयैव। 22. एपि० इं०, खण्ड 1, पृ० 302, पद्य 15; वही०, खण्ड 7, पृ० 202-8। 23. पोलिटिकल०, पृ० 114। 24. चौलुक्य, पृ0 1091 25. पोलिटिकल०, पृ० 1141 26. मैसूर इंस्क्रिप्शन्स, पृ० 58, 153। 27. प्राचीन भारत, पृ0 685-871 28. भारतीय इतिहास, पृ० 3411 29. प्राचीन भारत, पृ0 681, 1001 30. प्रबन्ध चिन्तामणि- कुमारपालादि प्रबन्ध प्रकरण 126-1291 31. एपि० इं०, खंड 1, पृ० 293 । 32. 'भारतीय इतिहास : एक दृष्टि' में इसका नाम 'एयराग' है, जो भ्रमात्मक है। 33. पज्जुण्णचरिउ, 1529191 4050 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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