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आवरण पृष्ठ के बारे में) कहा जाता है कि तीर्थंकर की धर्मसभा में परस्पर विपरीत प्रकृतिवाले पशु-पक्षी भी एक साथ अविरोध-भाव से बैठते हैं, ऐसा दिव्य-प्रभाव उस सभा का होता है; इसीप्रकार विरागी जैनसंतों के सान्निध्य में तो शेर और गाय के भी एक ही घाट पर पानी पीने की किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। इसी भाव को द्योतित करनेवाले इस आवरण-चित्र में न कवेल सिंह और गाय को एक ही घाट पर पानी पीते दिखाया गया है, अपितु उनकी सन्तति भी ममता की छाँव में समता का अद्भुत निदर्शन प्रस्तुत कर रही हैं। सिंह-शावक गाय का दुग्धपान कर रहा है, तो गाय के बछड़े को सिंहनी भी वात्सल्यपूर्वक स्तनपान करा रही
है।
___ धर्मसभा की ऐसी अद्भुत महिमाशाली परम्परा रही है; किन्तु 6 अप्रैल 2001 दिल्ली के इन्दिरा गाँधी इन्डोर स्टेडियम' में आयोजित 'भगवान् महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक महोत्सव' के शुभारम्भ-समारोह में जैसी स्थिति का निर्माण हुआ, वह जैनसमाज की एकता एवं संगठन के लिए अत्यन्त घातक है। धर्मसभा में तो पशु-पक्षी भी बैरभाव भुलाकर बैठते हैं, और हम मनुष्य श्रावक होकर भी अपने मतभेदों को भुलाकर सौहार्दपूर्वक नहीं बैठ सके; तो इसके कारणों की गंभीरता से मीमांसा अपेक्षित है। हमें अपने ज्ञान को विवेक का चाबुक लगाकर सही दिशा में गतिशील करने की अपेक्षा है।
. चूंकि दिगम्बर एवं श्वेताम्बर — इन दो सम्प्रदायों में कुछ आचारपरक विचारधारा का मतभेद तो है; किन्तु अब वे बातें मूलभूत सिद्धान्तों को प्रभावित करने लगीं हैं; और हम अहिंसा, अनेकान्त, स्याद्वाद और अपरिग्रह के मूलभूत सिद्धान्तों पर इन मतभेदों को हावी करने लगे हैं —यह शुभ-संकेत नहीं हैं।
सम्प्रदाय तो दिगम्बरों में भी हैं, और श्वेताम्बरों में हैं। दिगम्बरों में तेरहपंथी. बीसपंथी, तारणपंथी एवं मुमुक्षुमंडलवाले आदि हैं; तो श्वेताम्बरों में भी अनेकों गण-गच्छ के भेद हैं; जैसेकि तपागच्छ, खरतरगच्छ आदि। किन्तु इन भेदों के बाद भी वे सभी श्वेताम्बर या दिगम्बर शाखाओं के अन्तर्गत आ सकते हैं, तो हम सभी मिलकर जैनत्व में समाहित नहीं हो सके ऐसी क्या बाधा आ गयी थी? ___ ध्यान रहे यदि जैनसमाज से विचारों की सहिष्णुता खो गयी, तो अनेकान्त की चर्चा अपने मायने खो देगी। तथा यदि वाणी की सहिष्णुता समाप्त होने लगी, तो फिर स्याद्वाद-पद्धति का क्या औचित्य रह जायेगा? और यदि वैभव के प्रदर्शन एवं संसाधनों के न्यूनाधिक्य से विषमता का भाव बना रहा, तो फिर अपरिग्रहवाद कब हमारे जीवन को समता व सहिष्णुता का प्रयोग सिखा पायेगा? ___यह घटना हमें गंभीर विचारमंथन के लिए प्रेरित करती है कि महावीर के जिन सिद्धांतों को समझकर पूंछवाले (तिर्यंच) वैर भुला बैठे, उन सिद्धांतों के गीत गाकर भी हम मूंछवाले (मनुष्य) शायद उनके अर्थ को भी नहीं समझ सके हैं। –सम्पादक