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________________ लिख दिया कि “उस समय का राजा बुद्ध जैसे धार्मिक महापुरुषों के आगे ही नतमस्तक होता था...बिंबिसार और अजातशत्रु इसके अच्छे उदाहरण हैं।” किंतु बिबिसार तो बुद्ध द्वारा अपने धर्म का प्रचार करने से पहले ही महावीर का अनुयायी हो चुका था। –(डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन, भारतीय इतिहास-एक दृष्टि, पृ0 63) जहाँ तक अजातशत्रु का प्रश्न है, वह तो बुद्ध से यह पूछने गया था कि किस प्रकार वह वृज्जि विदेह और वैशाली गणतंत्रों पर विजय पा सकता है। गौतम बुद्ध ने इन गणतंत्रों की सात विशेषतायें अपने शिष्य आनंद को लक्ष्य कर बतायीं। उनमें यह भी थी कि जब तक ये मिलकर काम करते रहेंगे, तब तक वे वृद्धि को प्राप्त होंगे। अजातशत्रु को मंत्र मिल गया और उसने इन गणतंत्रों को अपने राज्य में मिला लिया। यह विजेता भी जैन था। किंतु बौद्ध-परंपरा से बाद में जोड़ दिया गया बताया जाता है। उसने कोई बौद्ध-स्मारक बनाया हो —ऐसा प्रमाण नहीं मिलता। 5. बद्धकाल में राज्य और वर्ण-समाज ___यह तो संभवत: सभी जानते हैं कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी महावीर और गौतम बुद्ध का युग था और दोनों ने ही वर्ण-व्यवस्था का विरोध किया था; किंतु श्री शर्मा ने अध्याय 13 मे यह मत व्यक्त किया है कि इस युग में “वर्ण-व्यवस्था की गई और हर एक वर्ण का कर्तव्य (पशा) स्पष्ट रीति से निर्धारित कर दिया गया।” (पृ०126)। इस कथन से बढ़कर तथ्यविरोध और क्या हो सकता है? एक इतिहासकार के अनुसार तो उस समय बुद्ध के बहुत ही कम अनुयायी थे। वास्तव में वह महावीर का युग था। वे बुद्ध से ज्येष्ठ थे और बुद्ध से पहले ही अपने श्रमणधर्म का प्रचार प्रारंभ कर चुके थे। अच्छा होता कि इस अध्याय का नाम 'महावीर युग की स्थिति' होता। यदि बुद्ध के प्रति आग्रह ही था, तो 'महावीर-बुद्ध युग' शीर्षक हो सकता था; किंतु लेखक का उद्देश्य तो वर्ण-व्यवस्था की श्रेष्ठता बताना संभवत: था। 6. वैशाली गणतंत्र श्री शर्मा ने वैशाली-गणतंत्र के प्रशासन-तंत्र की चर्चा की है। किंतु एक बार भी वैशाली-गणतंत्र' समस्त पद का प्रयोग नहीं किया है। शायद उन्होंने यह विद्यार्थियों पर छोड़ दिया है कि वे अनुमान कर लें कि वैशाली नाम का कोई गणतंत्र भी था। श्री काशीप्रसाद जायसवाल ने उसे "Recorded Republics" में गणित किया है। उसका विस्तृत वर्णन बौद्ध-साहित्य में उपलब्ध है। बुद्ध ने अंतिम वैशाली दर्शन के समय हाथी की भाँति मुड़ते हुए अपने शिष्य आनंद से कहा था कि “वह उनके संघ का संगठन वैशाली जैसा करे।” श्री दिनकर ने वैशाली को संसदों की जननी' कहा है। यह गणतंत्र विश्व का सबसे प्राचीन गणतंत्र माना जाता है, जिसका लिखित विवरण उपलब्ध है। वैशाली के लिच्छवियों की न्याय-प्रणाली की श्री शर्मा ने एक प्रकार से खिल्ली उडाई 1090 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000
SR No.521363
Book TitlePrakrit Vidya 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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