SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'प्राचीन भारत' पुस्तक में कुछ और भ्रामक कथन -राजमल जैन 'राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्' (NCERT) के द्वारा ग्यारहवीं कक्षा के लिए इतिहास-पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तक 'प्राचीन भारत' में जैनधर्म, संस्कृति एवं परम्परा के विषय में अनेकों तथ्यविरुद्ध निराधार पूर्वाग्रही निरूपण मिलते हैं। अनेकत्र तो भाषिक शिष्टता की मर्यादा का भी खुला उल्लंघन लेखक ने किया है। गवेषी विद्वान् श्री राजमल जैन ने इस विषय में आधार-सहित पहिले भी बहुत कुछ लिखा है और यह लेख उन्होंने 'अवशिष्ट भ्रमों का साधार निराकरण' की दृष्टि से 'प्राकृतविद्या' में प्रकाशनार्थ भेजा है। आशा है इस विषय में यहाँ प्रस्तुत आलेख के तथ्य जिज्ञासु एवं विवेकशील पाठकों के लिए उपयोगी जानकारी देकर इस दिशा में सक्रियता प्रदान कर सकेंगे। -सम्पादक उपर्युक्त पुस्तक की सामग्री का अध्ययन करने से यह तथ्य सामने आया है कि लेखक ने अनेक भ्रामक बातें प्राचीन इतिहास में जैन-योगदान के संबंध में लिखी हैं जो कि किशोर विद्यार्थियों को भ्रम में डाल सकती हैं। ऐसी कुछ बातों के संबंध में NCERT तथा विद्वानों का धान इस ओर आकर्षित किया जाता है। 1. वैदिक भरत के नाम पर भारतवर्ष बहीं __ श्री वासुदेव शरण अग्रवाल, अध्यक्ष, भारत विद्या विभाग, बनारस विश्वविद्यालय ने भरत से भारत की तीन व्युत्पत्तियाँ बताई थीं। एक तो अग्नि (भरत) से, दूसरी दुष्यन्त के पुत्र भरत से और तीसरी मनु (भरत) से। विचाराधीन पुस्तक के दूसरे ही पृष्ठ पर श्री शर्मा ने लिखा है—भारत के लोग एकता के लिए प्रयत्नशील रहे। उन्होंने इस विशाल उपमहाद्वीप को एक अखंड देश समझा। सारे देश को भरत नामक एक प्राचीन वंश के नाम पर भारतवर्ष (अर्थात् भरतों का देश) नाम दिया और इस देश के निवासियों को भारतसन्तति कहा।" । उपर्युक्त लेखक ने अप्रत्यक्ष रूप से यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि वेदों में भरत नाम आया है और उसीके नाम पर यह देश भारत कहलाता है। यह नाम किसे दिया गया, यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया। वेदों में अग्नि को भरत कहा गया है, क्योंकि वह अन्न आदि पकाने में सहायक होने के कारण सबका भरण-पोषण करती है। इस प्रकार अग्नि प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर 2000 0085
SR No.521363
Book TitlePrakrit Vidya 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy