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________________ भाषा, विभाषा और शौरसेनी - डॉ० माया जैन मूलभाषा एक है; परन्तु व्यवहार, लोकव्यवहार, साहित्यप्रयोग एवं क्षेत्रीय दृष्टि से उसका विभाजन अवश्य किया जाता है। जहाँ विकास और विस्तार के कारण शाखा प्रशाखा, परिवार उप-परिवार एवं भाषा - उपभाषा आदि का स्वरूप सामने आता है; वहीं सामान्य दृष्टि से भाषा के दो रूप उपस्थित होते हैं : 1. जनसाधारण में प्रयुक्त भाषा और 2. साहित्य में प्रयुक्त भाषा । सर्वप्रथम भाषा की प्रक्रिया आदान-प्रदान एवं संकेतों के कारण विकास को प्राप्त होती है । जो जिसप्रकार जिस रूप में था, जिस तरह विविध जातियों, वर्गों आदि में बोली जाती है; वह जनप्रचलित जनता की बोलचाल की भाषा, लोकभाषा या जनसाधारण की भाषा कहलाती है। कालान्तर में 'जनसाधारण की बोली' व्याकरण के अनुशासन में 'बंधकर 'भाषा' बन जाती है । डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री ने लिखा है— “जनसाधारण व्याकरण के नियमों से अपरिचित होने के कारण स्वेच्छानुसार स्वतंत्र रूपों का निर्माण करते हैं, जिससे प्राचीन रूपों में परिवर्तन हो जाता है । इस स्थिति में प्राचीन भाषा तो साहित्य की भाषा का रूप ग्रहण कर लेती है और नवीन भाषा, लौकिक भाषा, जनभाषा प्राकृतभाषा का रूप धारण कर लेती है । " - ( प्राकृत भाषा, पृष्ठ 10 ) डॉ॰ हरदेव बाहरी ने 'प्राकृतभाषा और उसके साहित्य के अनुशीलन' में कहा है कि "प्राचीन और मध्यकालीन आर्यभाषाओं का विकास किसी जनभाषा, प्राकृतभाषा से ही होता है । अत: ज्ञान और सभ्यता के विकास के साथ ही साथ भाषा का भी निरन्तर प्रसार होता रहता है। मनुष्य जिस वातावरण में रहता है, वह अपनी सुविधा एवं सुगमता के अनुसार बोलियों का विकास करता है । जिस बोली का बहुत से व्यक्ति बहुत समय तक प्रयोग करते रहते हैं, वह शैली कुछ समय के लिए किन्हीं विशेष ध्वनियों तथा किन्हीं विशेष रूपों पर आश्रित हो जाती है । " - ( प्राकृतभाषा, पृष्ठ 13 ) भाषा के जनसाधारण के प्रयोग इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि प्राचीन आर्यभाषा जो उस समय की जनभाषा रही होगी, वही वेदों की भाषा 'छान्दस्' और लोकप्रचलित जनसाधारण में बोली जानेवाली उस समय की बोली जानेवाली भाषा प्राकृत थी, अपना प्राकृतविद्या� जुलाई-सितम्बर '2000 ☐☐ 65
SR No.521363
Book TitlePrakrit Vidya 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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