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________________ ( 11 ) शाहपुर ( म०प्र०) में विद्यालय की स्थापना, बरुआसागर ( म०प्र०) में विद्यालय प्रारम्भ हुआ । (12) खतौली ( उ०प्र०) में 'कुन्दकुन्द विद्यालय' की स्थापना सन् 1935 में की गई, जो अब कॉलेज के रूप में परिणत है । (13) ललितपुर ( उ०प्र०) में 'वर्णी इंटर कॉलेज' एवं 'वर्णी महिला इंटर कॉलेज की स्थापना की, ये आज वर्णी जैन महाविद्यालय के रूप में गतिशील हैं । इन सभी स्थानों पर छात्रावास एवं सरस्वती भवन ( पुस्तकालय) की स्थापना की । संसार से विरक्त और सच्चे सुख की प्राप्ति में संलग्न समाज के आध्यात्मिक वर्ग का भी उन्होंने विशेष ध्यान रखा । उनके लिए अनेक स्थानों पर उदासीन आश्रमों की स्थापना करवाई। जिनमें इंदौर, कुण्डलपुर, ईसरी (बिहार) आदि के 'उदासीन आश्रम' आज भी समाज के आध्यात्मिक वर्ग के लिए आश्रय स्थल हैं। इसप्रकार ज्ञानी, त्यागी मार्ग का प्रवर्तन आपकी प्रेरणा से वर्णीजी व दातागुरु बाबा गोकुलचन्द जी ने किया । इन शिक्षा-संस्थानों की स्थापना के लिए माँ चिरोंजाबाई ने धर्मपुत्र गणेशप्रसाद जी वर्णी, बाबा भागीरथ जी वर्णी एवं दीपचन्द जी वर्णी आदि अनेक विद्वानों के साथ दीर्घ तपस्या की, गाँव-गाँव में आर्थिक सहयोग के लिए वे स्वयं भी वर्णीजी के साथ गईं। पाठशाला के तीर्थ का ऐसे शुभमुहूर्त में प्रवर्तन हुआ कि जहाँ से भी वे निकली; पाठशालायें, महाविद्यालय उदासीन आश्रम, धर्मशालायें खुलते गए, अर्थ की कोई कमी नहीं रही। उनके पुण्य का उनकी वाणी का ऐसा सातिशय प्रभाव था जो चाहा एवं जो कहा, वही हुआ । यह शिक्षा आन्दोलन पुरुष वर्ग और महिलावर्ग दोनों के लिए समानरूप से चला । उन्होंने स्त्री-शिक्षा को राष्ट्रीय - विकास का मुख्य आधार माना । राज्यसत्ता भी जहाँ हार मानकर परास्त हो गई, वहाँ यह कार्य (माँ चिरोंजाबाई) एक सदाचारिणी गृहस्थ स्त्री ने सहज ही कर दिया । सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सभी शिक्षण संस्थायें साम्प्रदायिक संकीर्णता की भावना से बहुत ऊपर उठकर स्थापित हुईं। धर्म, जाति, गरीबी, अमीरी के भेद के बिना सभी वर्गों को समानरूप से अध्ययन का अवसर मिला । बाई जी के शब्दों में “साम्प्रदायिकता ने ‘भारत’ को भारत (युद्धक्षेत्र) बना दिया है।” यही कारण है कि उन्होंने उनकी शिक्षण-संस्थाओं ने व्यक्तिमात्र की निराशा, हताशा एवं बौद्धिक अवसाद दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । को प्रारंभ में सभी शिक्षण-संस्थायें सामाजिक अनुदान से चलीं । अब अधिकांश को सरकारी अनुदान प्राप्त है। कुछ आज भी समाज के योग्य व प्रामाणिक व्यक्तियों द्वारा प्राप्त अनुदान में चलती है। इन संस्थाओं ने प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा देने में वही रुचि दिखलाई। ये प्राकृतविद्या + जुलाई-सितम्बर '2000 ☐☐ 49
SR No.521363
Book TitlePrakrit Vidya 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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