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सम्पादक-मण्डल
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'आम्नाय का वैशिष्ट्य
"वाचना-पृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशा: ।” अर्थात् वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश -ये पाँच स्वाध्याय के अंग हैं। “अष्टस्थानोच्चारविशेषेण यच्छुद्धं घोषणं पुन: पुन: परिवर्तनं स आम्नाय: कथ्यते ।”
-(आo श्रुतसागर सूरि, तत्त्वार्थवृत्ति, नवम अध्याय, 25) कण्ठ, तालु आदि आठ उच्चारण-स्थानों की विशेषता से जो शुद्ध घोषण/उच्चारण बारम्बार परिवर्तनपूर्वक किया जाता है, उसे 'आम्नाय' कहते हैं।
धन-कन-कंचन-राजसुख, सबहिं सुलभ कर जान । दुर्लभ है संसार में, एक यथारथ ज्ञान ।।
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कातन्त्रव्याकरणम् 'कातन्त्रं हि व्याकरणं पाणिनीयेतरव्याकरणेषु प्राचीनतमम् । अस्य प्रणेतविषयेऽपि विपश्चितां नैकमत्यम् । एवमेव कालविषये नामविषये च युधिष्ठिरो हि कातन्त्रप्रवर्तनकालो विक्रमपूर्व तृतीय-सहस्राब्दीति मन्यते।'
-लिखक : लोकमणिदाहल:, व्याकरणशास्त्रेतिहास:,
भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ 260) **
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000