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________________ 'सम्राद खारवेल के शिलालेख' की सूत्रात्मक शैली की दृष्टि से समीक्षा –श्रीमती रंजना जैन प्राचीन अभिलेखों का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, नैतिक, भौगोलिक आदि अनेकों दृष्टियों से अध्ययन होता रहा है और उन पर आलेख, पुस्तकें आदि भी लिखी जाती रहीं हैं। किन्तु साहित्यिक दृष्टि से अभिलेखों का अध्ययन व लेखन का कार्य बहुत नगण्यप्राय: रहा है। इस दिशा में विदुषी लेखिका द्वारा किया गया यह कार्य भारतीय प्राचीन अभिलेखों के बारे में एक नवीन चिन्तन-परिदृश्य का सूत्रपात करता है। इस दृष्टि से कार्य करने पर इन अभिलेखों को साहित्यिक मान्यता भी मिल सकेगी। 'प्राकृतविद्या' के जिज्ञासु पाठकों को यह आलेख अवश्य रुचिकर लगेगा। -सम्पादक दिग्विजयी सम्राट् खारवेल ईसापूर्व द्वितीय शताब्दी का अपराजेय सम्राट् एवं प्रजावत्सल राजा था। प्राप्त उल्लेखों के अनुसार वह संभवत: भारत का ऐसा प्रथम सम्राट् था, जिसका 'महाराजा' के रूप में राज्याभिषेक किया गया था। जैसा कि वह अपने ऐतिहासिक हाथीगुम्फा शिलालेख में लिखता है— “महाराजाभिसेचनं पापुनाति।" उसने इस देश को 'भारतवर्ष' इस संज्ञा से भी अपने उक्त शिलालेख में अभिहित करके इस नामकरण को ऐतिह्यता एवं असंदिग्धता प्रदान की थी। इतिहास एवं संस्कृति की दृष्टि से अनेकों महत्त्वपूर्ण तथ्यों को आत्मसात् किये इस संक्षिप्त कलेवरवाले महनीय शिलालेख में शब्दों को सीमितता होते हुए भी अपार कथ्य समाहित है। इसीकारण से इसे 'सूत्रात्मक शैली में लिखे गये अद्वितीय ऐतिहासिक अभिलेख' की संज्ञा भी विद्वानों ने प्रदान की है। इसमें निहित सूत्रात्मकता को लक्षित करके उसकी साधार सिद्धि करने का संक्षिप्त प्रयास इस आलेख में किया गया है। शास्त्रकारों ने सूत्र का लक्षण निम्नानुसार बताया है “अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद् गूढनिर्णयम्। निर्दोष हेतुमत्तथ्यं सूत्रं सूत्रविदो विदुः।।" इसके अनुसार सूत्र के प्रमुख सात लक्षण हैं1. जिसमें कम से कम शब्दों में अधिक बात कही गई हो। 2. जिसमें संदेहरहित प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000 0033
SR No.521363
Book TitlePrakrit Vidya 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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