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________________ आवरण पृष्ठ के बारे में भारत सरकार के उपक्रम 'राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्' (N.C.E.R.T) द्वारा ग्यारहवीं कक्षा के छात्रों के लिये निर्मित इतिहास-विषयक पुस्तक 'प्राचीन भारत' के लेखक प्रो० रामशरण शर्मा ने जैनधर्म और संस्कृति के सम्बन्ध में जो पाठ लिखा है, उसमें अनेकों विसंगतियाँ, पूर्वाग्रही प्रस्तुतिकरण एवं तथ्यविरुद्ध प्ररूपण प्राप्त होते हैं। जैसेकि भगवान् महावीर को जैनधर्म का प्रवर्तक कहना, उनका जन्म गंगा के मैदानी भाग में हुआ बताना, दीक्षा के उपरान्त उनकी द्वादशवर्षीय तपस्या को 'बारह वर्ष तक यहाँ-वहाँ भटकते रहना' तथा बौद्ध धर्म के साथ जोड़कर कई असंगत बातों को कहना आदि नितांत आपत्तिजनक, सांप्रदायिकता विद्वेष की भावना से प्रेरित तथा संकीर्ण मानसिकता के द्योतक बिन्दु हैं। इसके विषय में विद्वद्वर्य श्री राजमल जी जैन, नई दिल्ली का सप्रमाण गवेषणापूर्ण आलेख प्राकृतविद्या के अंक में सर्वप्रथम प्रकाशित किया गया था, जिसमें प्रो० रामशरण शर्मा द्वारा प्रस्तुत अनेकों तथ्यविरुद्ध प्ररूपणों का आधारसहित निराकरण किया गया था। इस आलेख को पढ़कर देशभर के धर्मश्रद्धालुओं एवं बुद्धिजीवियों में खलबली मच गई, तथा चारों ओर से इस बारे में विरोध के स्वर मुखरित होने लगे। अलवर-निवासी श्री खिल्लीमल जैन एडवोकेट ने तो लेखक को विधिवत् कानूनी नोटिस देकर तथ्यों का स्पष्टीकरण माँगा। वरिष्ठ विद्वान् पं० नाथूलाल जी शास्त्री, इंदौरवालों ने इस बारे में लेख लिखकर समाज को प्रेरित किया कि ऐसी पुस्तकों का उचित तरीके से विरोध किया जाये। इसी क्रम में 22 अप्रैल 2000ई० को दिल्ली के परेड ग्राऊण्ड मैदान में आयोजित विशाल समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक माननीय श्री कु०सी० सुदर्शन जी को पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने इस पुस्तक के संस्करण और उसके पाठों में आगत उक्त बिन्दुओं का परिचय दिया; तब श्री सुदर्शन जी ने इस बात को गंभीरता से लिया तथा कहा कि वे केन्द्रीय मानव-संसाधन-विकास मंत्री जी से इस विषय में अपेक्षित सुधार के लिए कहेंगे। किन्तु अभी तक इस भारतीयता का नारा लगानेवाली सरकार के द्वारा भारतीय संस्कृति के विरुद्ध लिखी गयी इस पुस्तक और इसके लेखक के प्रति कोई कार्यवाही नहीं की गई है। प्रतीत होता है कि यदि सरकार ने तत्काल इस विषय में कोई कठोर कदम नहीं उठाया तो पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी के पावन निर्देशन में सम्पूर्ण जैनसमाज इस पुस्तक की आपत्तिजनक सामग्री वाले पृष्ठों को सार्वजनिकरूप से लालकिले के मैदान में अग्नि-संस्कार करने को विवश होगी। हमें आशा है कि सरकार समय रहते चेत जायेगी और समाज को ऐसा कदम उठाने को विवश नहीं होना पड़ेगा, जिससे भारत की साम्प्रदायिक सौहार्द की शाश्वत उदात्त भावना को कोई ठेस पहुंचे। –सम्पादक
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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