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________________ चेति संज्ञान्तरस, अर्थात् चार पद्धडिया छन्दों का कडवक' होता है। 'कडवक' के अन्त में 'ध्रुवा' या 'घत्ता' का रहना आवश्यक है। ___ भरतमुनि ने अपने 'नाट्यशास्त्र' में 'धुवाभिधाने चैवास्य' (15/15) कहकर 'कडवक' के अन्त में 'ध्रुवा' का प्रयोग बताया है। आचार्य हेमचन्द्र ने 'धुवा' की परिभाषा षट्पदी, चतुष्पदी एवं द्विपदी के रूप में प्रस्तुत की है। यथा ___सा त्रेधा षट्पदी, चतुष्पदी द्विपदी च।। 6/2।। प्रयोगात्मक विधि से 'कडवक' की परिभाषा का विश्लेषण करने पर उसके अनेक रूप हमें उपलब्ध होते हैं। जम्भोटिया, जिसके कि प्रत्येक चरण में 8 मात्रायें, रचिता, जिसके कि पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध में 28 मात्रायें, मलयविलयसिया, जिसके प्रत्येक चरण में 8 मात्रायें, खंडयं-23 मात्राओं वाला छन्द, अर्धाली-20 मात्रा वाला छन्द, हेला-22 मात्रा वाला छन्द, दुवई, प्रत्येक अर्धाली में 28 मात्रा वाला छन्द, घत्ता के पूर्व पाया जाता है और चरणों की संख्या 14 से लेकर 30 तक पाई जाती है। कडवक' के लिये अनिवार्य नियम 'घत्ता' का पाया जाना है। 'कडवक' में छन्द के पदों की कोई निश्चित संख्या नहीं पाई जाती। पुष्पदन्द ने 9 अर्धालियों से लेकर 13 अर्धालियों तक का प्रयोग कडवक' में किया है। इनके हरिवंशपुराण में 83वीं सन्धि के 15वें कडवक में 10 अर्धालियों के पश्चात् घत्ता का प्रयोग आया है और इसी सन्धि के 16वें कडवक में 12 अर्धालियों के पश्चात् घत्ता आया है। स्वयम्भू ने 8 अर्धालियों के अनन्तर घत्ता-छन्द का व्यवहार किया है। यही शैली रामचरितमानस में भी पाई जाती है। महाकवि तुलसीदास ने 8 अर्धालियों अर्थात् चौपाई के बाद दोहे का प्रयोग किया है। महाकवि जायसी ने अपने पद्मावत में 7 अर्धालियों के पश्चात् दोहा-छन्द रखा है। यह छन्द-शैली पुष्पदन्त की कडवक-शैली से प्रभावित है। पुष्पदन्त ने 7 अर्धालियों से लेकर 12 अर्धालियों तक का घत्ता के पूर्व नियोजन किया है। नूर मुहम्मद की 'अनुराग-बाँसुरी' में दोहा के स्थान पर 'बरबै छन्द' का प्रयोग पाया जाता है। अर्धालियों की संख्या अपभ्रंश के महाकवि स्वयम्भू और उनके पुत्र त्रिभुवन के समान ही है। अपभ्रंश-काव्य में घत्ता की मात्रायें समान नहीं हैं, अत: हिन्दी का बरबै भी पत्ते का ही रूपान्तर है। सोरठा, बरवै, कुण्डलिया का पूर्वार्ध एवं रोला का विकास भी घत्ता से ही हुआ है। यों तो रोला का प्रयोग अपभ्रंश में पाया जाता है, पर छन्द के विकास-क्रम में ध्यान देने से स्पष्ट ज्ञात होता है कि घत्ता ने अनेक रूप धारण किये हैं और रोला भी उन्हीं अनेक रूपों में से एक है। यही कारण है कि स्वयम्भू और प्राकृत-पैंगलम् इन दोनों के द्वारा प्रतिपादित घत्ता की मात्राओं में भी अन्तर पाया जाता है। अतएव यह निष्कर्ष निकालना सहज ही सम्भव है कि 'कडवक' वह छन्द है जिसमें 7 से लेकर 16 या 18 तक अर्धालियां हों और अन्त में एक 'ध्रुवक' या 'घत्ता' का व्यवहार किया गया हो। प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000 00 89
SR No.521361
Book TitlePrakrit Vidya 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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