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________________ बनाया। उनके शिष्यों की एक लम्बी संख्या रही जो देश के विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न पदों एवं कार्यों में संलग्न होकर समाज एवं राष्ट्र की सेवा में अग्रणी रहे हैं। उनके विद्वान् शिष्यों में स्व० पं० श्रीप्रकाश शास्त्री, स्व० पं० भंवरलाल न्यायतीर्थ, स्व० पं० मिलापचन्द शास्त्री, स्व० श्रीमती मोहनादेवी जैन न्यायतीर्थ, स्व० डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल एवं कविवर पं० अनूपचन्द्र न्यायतीर्थ, वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रवीणचन्द छाबड़ा, डॉ० गुलाबचन्द्र जैन जैनदर्शनाचार्य, डॉ० राजकुमार जैन, वैद्य प्रभुदयाल कासलीवाल, वैद्य फूलचन्द जैन, प्रो० महादेव धनुष्कर, डॉ० प्रेमचन्द राँवका आदि प्रमुख हैं। ____पं० चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ का व्यक्तित्व महान् था और कृतित्व बहुआयामी। वे श्रेष्ठ-आदर्श अध्यापक, लेखक, पत्रकार, कवि, प्रवचनकार व समाज-सुधारक थे। जैनदर्शन, जैन-बन्धु एवं वीरवाणी जैसी पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने एक ओर समाज में व्याप्त शिथिलाचारों एवं कुरीतियों के निराकरण के लिए जन-जागरण किया, तो दूसरी ओर युवा लेखकों का मण्डल तैयार किया। पूज्य पंडित साहब का समग्र जीवन माँ भारती की आरती में ही व्यतीत हआ। वे सरस्वती-पुत्र थे। उनकी विद्याराधना और साहित्य-साधना उच्च कोटि की थी। वे मौलिक रचनाकार थे। उनकी रचनाधर्मिता ने जैनदर्शनसार, सर्वार्थसिद्धिसार, भावना-विवेक, पावन-प्रवाह, प्रवचन-प्रकाश, अर्हत्-प्रवचन, प्रद्युम्नचरित, निक्षेपचक्र और दार्शनिक के गीत जैसी मौलिक रचनायें साहित्य-जगत् को प्रदान की। इनके अतिरिक्त उनके शताधिक लेखों, कहानियों, सम्पादकीय आलेखों, पुस्तकीय समीक्षाओं और आकाशवाणी-वार्ताओं ने जन-मानस को आन्दोलित किया। उनके प्रवचनों में सम्बोधन एवं उद्गार बड़े मर्मस्पर्शी होते थे। विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के लिए उनके द्वारा अहर्निश खुले रहते थे। प्रात: 4.00 बजे से रात्रि शयनपर्यन्त उनका समय प्राय: अध्ययन-अध्यापन में ही व्यतीत होता था। उनकी आवश्यकतायें इतनी अल्प थीं कि वे हृदय खोलकर अपने शिष्यों को ज्ञान के साथ-साथ अर्थ से भी सहयोग करते थे। दाक्षिणात्य दार्शनिक विद्वान् एवं राजस्थान में संस्कृत शिक्षा निदेशालय के संस्थापक निदेशक स्व० श्री के माधवकृष्णन के शब्दों में—“पं० चैनसुखदास जी ऋग्वेदकालीन आदर्श शिक्षक थे।” शिक्षा के क्षेत्र में की गई उनकी विशिष्ट सेवाओं के फलस्वरूप भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय श्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया, जो न केवल जयपुर, अपितु राजस्थान प्रान्त के किसी शिक्षक को पहली बार प्राप्त सम्मान था। उनका अखिल भारतीय स्तर के विद्वानों एवं सन्तों से निकट का संबंध था, उनमें पं० दरबारीलाल कोठिया, पं० सत्यभक्त, पं० चन्द्रशेखर द्विवेदी (पुरी के शंकराचार्य), बौद्ध विद्वान् भदन्त आनन्द कौसल्यायन, यशपाल, जैनेन्द्रकुमार, प्रो० प्रवीणचन्द, आचार्य तुलसी, आचार्य हस्तीमल, ऋषभदास रांका, आचार्य नानेश आदि प्रमुख हैं। अनेक साधु-संतों को 00 76 प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000
SR No.521361
Book TitlePrakrit Vidya 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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