SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (प्रेरक व्यक्तित्व मनीषी साधक : पं0 चैनसुखदास न्यायतीर्थ . -डॉ० प्रेमचन्द्र रांवका एक ऐसा कल्पवृक्ष मरुभूमि में उगा, जिसकी सघन छाया में न जाने कितने विद्यानुरागी पथिकों ने न केवल शीतल छाँव पायी; अपितु ज्ञान एवं संस्कार के सुमधुर फलों का आस्वादन भी किया। ऐसे अद्वितीय मनीषी पंडितप्रवर चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ की जन्म शताब्दी' के सुअवसर पर कृतज्ञ विनयांजलि-स्वरूप यह आलेख प्रस्तुत है। -सम्पादक __भारतीय संस्कृति, साहित्य, कला एवं शौर्य का प्रमुख केन्द्र राजस्थान का भारतीय इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रहा है। एक ओर यहाँ की भूमि का कण-कण वीरता एवं शौर्य के लिये प्रसिद्ध रहा है तो दूसरी ओर साहित्य एवं संस्कृति के संवर्द्धन एवं सम्पोषण में यहाँ के सन्तों, विद्वानों एवं श्रेष्ठियों ने अपना अमूल्य योगदान किया है। शक्ति और भक्ति का अपूर्व सामंजस्य इस प्रदेश की अपनी विशेषता है। यहाँ की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विरासत ने देश के विकास में उल्लेखनीय योगदान किया है। भारतीय वाङ्मय का विपुल भण्डार राजस्थान के ग्रन्थागारों में विद्यमान है। राजस्थान की वीरभूमि ने अनेक प्रतिभाओं एवं मनीषी विद्वान् रत्नों को जन्म दिया हैं। महापण्डित आशाधर, महाकवि माघ, भट्टारक शिरोमणि पद्मनन्दि, भट्टारक सकलकीर्ति, महाकवि ब्रह्म जिनदास, आचार्य हरिभद्रसूरि, पं० टोडरमल, पं० दौलतराम, पं० जयचन्द छाबड़ा, पं० सदासुख कासलीवाल, मुनिश्री जिनविजय जैसे सन्तों एवं विद्वानों ने राजस्थान में सामाजिक एवं साहित्यिक क्रान्ति का बिगुल बजाया। राजस्थान के ऐसे ही गौरवशाली विद्वानों में पं० चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ का नाम स्वर्णाक्षरों में उल्लेखनीय है। उनका स्मरण आते ही उन्नत ललाट, आध्यात्मिक आभा से युक्त तेजस्वी मुख-मण्डल, कृश-देह, आजानुबाहु और सादा भद्रवेश से मण्डित एक वन्दनीय व्यक्तित्व सामने आ जाता है। वे उन विरल विभूतियों में से थे, जिन्होंने आजीवन अनेक विषम परिस्थितियों से लोहा लेते हुये स्वयं एक युग का निर्माण किया। उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना सूक्ष्म, कोमल एवं दुर्बल था; अन्तरंग व्यक्तित्व उतना ही 0074 प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000
SR No.521361
Book TitlePrakrit Vidya 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy