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________________ णक्रवत्त-वण्णणं जैनसंघ में अनेक विषयों के विशेषज्ञ श्रमण हुआ करते थे। मूल संघपति आचार्य के अतिरिक्त ये सभी निर्यापकाचार्य, प्रवर्तकाचार्य आदि 'आचार्यान्त' पदवीधारी श्रमण वस्तुत: उपाध्याय परमेष्ठी' के अन्तर्गत परिगणित होते थे। ऐसे ही एक प्रमुख श्रमण को सांवत्सरिक क्षपणक' कहा जाता था। ये जैनविधि से ज्योतिषशास्त्र के पारंगत होते थे। इनसे परामर्श करके ही संघपति संघ के विहार, चातुर्मास-स्थापना आदि के निर्णय लिया करते थे; ताकि संघ दुर्भिक्ष, अराजकता, महामारी आदि अनेकविध विपदाओं से सुरक्षित रहकर निर्विघ्नरूप से धर्मसाधना कर सके। संभवत: इसीकारण से श्रमणमुनियों के विचरण को सुभिक्षसूचक एवं मंगल माना जाता रहा है। ___ यहाँ पर 'सांवत्सरिक-क्षपणक' के मतानुसार किस नक्षत्र में सल्लेखना लेने पर मुनि किस नक्षत्र में किस समय पर देहत्याग करते हैं' - इसका महत्त्वपूर्ण दिशानिर्देश किया गया है। इसकी विशद जानकारी आज के श्रमणों को भी अनिवार्यत: अपेक्षित है। आशा है यह मूलानुगामी विवरण मागदर्शक सिद्ध होगा। -सम्पादक तं जधा। अस्सिणी-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो सादि-णक्खत्ते रत्ते कालं ।।1।। भरणि-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो रेवदि-णक्खत्ते पच्चूसे मरदि।। 2 ।। कित्तिग-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, उत्तरफागुणि-णक्खत्ते मज्झण्हे मरदि।। 3 ।। रोहिणी-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो सवण-णक्खत्ते अद्धरते मरदि।। 4।। मियसिर-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो पुव्वफग्गुण-णक्खत्ते मरदि।। 5।। अद्दा-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो उत्तरदिवसे मरदि। जदि ण मरदि तदा तह्मि पुरोगदे णक्खत्ते मरिस्सदि।। 6।। पुणवस-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तदा अस्सणि-णक्खत्ते अवरण्हे मरदि।।7।। पुस्स-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो मियसिर-णक्खत्ते मरदि।।8।। असलिस-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो चित्त-णक्खत्ते मरदि।। १।। मघ-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि, तो तद्दिवसे मरदि; जदि ण मरदि तदा तह्मि पुरोगदे णक्खत्ते मरदि।। 10।। पुव्वफगुणि-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्णदि, तो घणिट्ठा-णक्खत्ते दिवसे मरदि ।। 11।। उत्तरफग्गुणि-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्णदि, तो मूल-णक्खत्ते पयोसे मरदि।। 12 ।। 4062 प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000
SR No.521361
Book TitlePrakrit Vidya 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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