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________________ रहता था। मैं (ठंड दूर करने के लिये) आग से नहीं तापता था। मुनि अवस्था में एकाकी रहकर ध्यान में लीन रहता था। ध्यातव्य है कि उपर्युक्त नग्न रहना, केशलोंच करना, एक बार दिन में खड़े-खड़े अपने हाथों से आहार लेना, आहारशुद्धि (अनुद्दिष्ट आहार, निरतिचार आहार आदि) का पालन करना, अनेकविध प्राकृतिक शीत आदि परिषहों को सहन करना - ये सब क्रियायें दिगम्बर जैनश्रमण की हैं। बुद्ध के द्वारा अपने जीवनचरित के रूप में इन सबका वर्णन करने से स्पष्ट है कि बुद्ध सर्वप्रथम निर्ग्रन्थ दिगम्बर जैनश्रमण ही बने थे; तथा जब उनसे यह कठोर चर्या नहीं निभ सकी, तो उन्होंने काषाय (गरुये) कपड़े पहिनकर, पात्र में लोगों के घरों से भिक्षा लाकर भोजन करना प्रारंभ किया। इसप्रकार वस्त्र-पात्र आदि रखकर वे मध्यमार्गी साधुवेश में तपस्या करने लगे।" इससे स्पष्ट है कि जैनसाधना का सूत्रधार श्रमणों की परम्परा महात्मा बुद्ध के बहुत पहिले से विद्यमान थी। विख्यात मनीषी डॉ० रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं___“जैन-साधना जहाँ एक ओर बौद्ध-साधना का उद्गम है, वहीं दूसरी ओर वह शैवमार्ग का भी आदिस्रोत है।" – (संस्कृति के चार अध्याय, पृष्ठ 738) इतना ही नहीं, बौद्धधर्म के प्रचारक के रूप में कहे जाने वाले प्रियदर्शी सम्राट अशोक के पूर्वज पितामह-सम्राट चन्द्रगुप्त एवं पिता सम्राट् बिन्दुसार स्वयं जैन थे। तथा सम्राट अशोक ने भी राज्याभिषेक के आठ वर्ष तक एक जैन के रूप में ही अपनी आस्था रखी, बाद में बौद्धधर्म से प्रभावित होने के बाद में जैनसंस्कार उसने नहीं छोड़े। इस बारे में उद्धरण द्रष्टव्य हैं___ “भारत के सीमान्त से विदेशी सत्ता को सर्वथा पराजित करके भारतीयता की रक्षा करनेवाले सम्राट चन्द्रगुप्त ने जैन-आचार्य श्री भद्रबाह से दीक्षा ग्रहण की थी। उनके पत्र बिम्बसार थे। सम्राट अशोक उनके पौत्र थे। कुछ दिन जैन रहकर अशोक पीछे बौद्ध हो गये थे।" -(श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, कल्याण' मासिक, पृष्ठ 864, सन् 1950) "So slight seemed to Asoka difference between Jainism and Budhism that, he did not think it necessary to make a public profession of Budhism till about his 12th reignal (247 B.C.) so that nearly, if not all, his rock inscriptions are really those of a Jain sovereign." -('Science of comparative religions' by Major General J.S.R. Forlong, ____Page 20, Published in 1897 अर्थ:-जैन और बौद्ध धर्म के मध्य राजा अशोक इतना कम भेद देखता था कि उसने सर्वसाधारण में अपना बौद्ध होना अपने राज्य के 12वें वर्ष में (247 ई०पू०) कहा था। इसलिए करीब-करीब उसके कई शिलालेख जैनसम्राट' के रूप में हैं। प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000 1023
SR No.521361
Book TitlePrakrit Vidya 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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