________________
आराहण भयवइ लिहहि ना चालीस हंसुत्तहं वद्धी । पंच मरण जे तहिं कहिया चेयण तिहिं भेयहिं सुपसिद्धी ।। 23 ।। पंच णिगंथ सत्त - सिय-भंगइं णव- णिहि चउदह - रयण समग्गइं । बुद्धिउ चउ बलसत्त गुण दव्व सयज्जव गुण संभालहि । आलोयण दस दोस लिहि थावर पय छज्जीव मचालहिं ।। 24।। चउतीसइं लिहिअइ सइसारं छव्विह पुग्गलु छह आहारई । छह संठाणइं संहणणा दसविह सणु सुद्धिउ लिहितहं । अंतराय बत्तीस भणि विच्चावच्चु भत्ति दस दसविहु ।। 25।। पंडियमरणु तिणि तिहुं जाणहि अट्ठविवेय पंचकल्लाई । दायारइं लिहि सत्तगुण, छिंपहि अट्ठसुद्धि हयभावई । सत्तरु सय उवेयट्ठ गिरिपुरउ दहोत्तर सउ खगवासई ।। 26।। कप्पवासि पडुल तेसट्ठिवि लिहि अक्खर पूरिवि चउसट्ठिवि । पंच वरण छह रस गणहिं सत्त विसर दुइ गंध णिरुत्तई । अट्ट फरुसि चउ दाण पुणु अट्ठावीसइं विसय समप्पाहि ।। 27 ।। पाडिहेर (प्रातिहार्य) अट्ठवि जिण दह पडिलेहणे गुण पंच मुणिंदहं । पंच अट्ठ सय पंच तिया अट्ठावीस इगारह अक्खिय । अंगइ पुव्व पयणियई चउदह गुण सोयारम संकिय ।। 28 ।। लिवि अट्ठारह कला वहत्तरि चउसट्ठि वि विणाण भणंतरि । रिउ छह बारह बाहर मास लिहि पुढवि भेय छत्तीस विसेसहि । सत्तावीस अणगार-गुण जिणहर सहसकूट महु हरेसहिं ।। 29 । । सत्ता उदय उदीरण कम्महं लिहिस विसेस विहिय जिणधम्महे । एत्तिउ लिहिवि समप्पियउं मुद्धउ घरि गय उट्ठिय चुणियं । विजयचंदमुणि वयण सुणि उत्तम सावय वयणु छणियं ।। 30 ।। तिहुवणगिरिपुर जगि विक्खायउं सग्ग खंडु णं धरियल आयउं । तहि णिवसंतय मुणिवरिणा अजय णंरिदहं रायविहारी । वेगिं विरइय चूनडिया सोहहो मुणिवर जे सुवसारा ।। 31 ।। इय चुनडिय मुणिंद पयसियं संपुंणी जिण आगम-भासियं । पढहिं गुणहिं जे सद्दहहिं ते पावहिं राय सुक्ख - निहाणइं । भवसायरु भवियण तिरहिं मक्ख सोक्खु ते णर पावहिं ।। 32 ।। ।। इति श्री विणयचंद मुणि कृतं चूनडी रासकं समाप्तं । ।
नोट: - इस कृति का रचनाकाल सं० 1210-15 के लगभग होना चाहिये, सं० 1455 में लिखे गुटके में यह रचना विद्यमान है।
क्योंकि
O 56
प्राकृतविद्या + जुलाई-सितम्बर 199