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________________ भारतीय चित्रकाल का मध्य एवं उत्तरमध्यकालीन इतिहास जैन चित्रकला का इतिहास है। दसवीं ग्यारहवीं शती से पन्द्रहवीं शती तक जैन हस्तलिखित-ग्रन्थों में स्थान पाने वाले चित्र व पट्टावलियाँ ही चित्र सामग्री के रूप में चित्र-इतिहास के कोष को भरते हैं। 'मोहनजोदड़ों' और 'हड़प्पा' के बाद भारत की प्राचीन मूर्तियाँ जैन मूर्तियाँ ही हैं। शिलालेखों में भी ‘कलिंग जिन' की मूर्ति का उल्लेख सबसे प्राचीन है। 'मोहनजोदड़ों' और 'हड़प्पा' की योगी की मूर्तियों में भी विद्वानों ने 'कायोत्सर्ग-मुद्रा' को ढूँढ निकाला है, जो कि जैन मूर्तियों की विशेष मुद्रा है। इसप्रकार कला और स्थापत्य के क्षेत्र में भी जैनों का अमूल्य योगदान है। सन्दर्भ-सूची 1. मूलाचार, 561 2. “जिनस्य सम्बन्धी जिनेन प्रोक्तं वा जैनम्।” –(प्रवचनसार-तात्पर्यवृत्ति, 206)। 3. एम० हिरियन्ना, भारतीयदर्शन, पृ० 156। 4. श्री सतीशचन्द्र चट्टोपाध्याय एवं धीरेन्द्रमोहनदत्त, 'भारतीयदर्शन', पृ० 46। 5. आचार्य बलदेव उपाध्याय : 'भारतीय दर्शन', पृ० 90। 6. बैरिस्टर चम्पतराय : ‘आदि ब्रह्मा ऋषभदेव' (अनुवाद की ओर से)। 7. अग्निपुराण, 10/10/11। 8. आदिब्रह्मा ऋषभदेव (अनुवाद की ओर से)। 9. डॉ० राधाकृष्णन: 'भारतीय दर्शन' (भाग-1), पृ० 233। 10. आचार्य बलदेव उपाध्याय: भारतीय दर्शन, पृ० 91। 11. वही, पृ० 91। 12. विद्यानन्द मुनि : 'तीर्थंकर वर्द्धमान', पृ० 33। –आचार्य जिनसेन: हरिवंशपुराण 9/211-5; निर्वाणभक्ति 4 । 13. जयधवला, भाग 1, पृ० 81; निर्वाणभक्ति: 12। 14. “आचेलक्को धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स" अर्थात् ऋषभदेव के पहिले और बाद के महावीर भी धर्म अचेलक (निर्वस्त्र) था। (श्वेताम्बर) पंचाशक मूल-17, प्रकाशक ऋषभदेव केसरीत्मव श्वेताम्बर संस्था रतलाम 1928। जैन आचार, पृ० 153। 15. निर्वाणभक्ति, 251 16. तत्त्वार्थसूत्र, 7/1-2। 17. एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका खण्ड-25, ग्यारहवाँ संस्करण सन् 1911। - H.H. Wilson-Essays and lectures on the religion of Jains. 18. आचार्य समन्तभद्र, 'युक्त्यनुशासन', 61। 19. विद्यानन्द मुनि : तीर्थंकर वर्द्धमान, पृ०60। 20. तत्वार्थसूत्र 1/1। 21. स्वयम्भूस्तोत्र-2। 22. सागारधर्मामृत 4/8-9। 23. सागारधर्मामृत 4/1213। जिनसेन : हरिवंशपुराण 3/3/7। 24. पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री : जैनधर्म, पृ० 47। 25. जैनों का साहित्य के क्षेत्र में योगदान हेतु देखिए—डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री कृत 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा' एवं पार्श्वनाथ शोध संस्थान वाराणसी से कई भागों में प्रकाशित 'जैन साहित्य का वृहद् साहित्य'। 26. कला के क्षेत्र में जैनों के योगदान हेतु भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से प्रकाशित ग्रन्थ 'जैन कला और स्थापत्य' भाग 1-3, देखें। प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर'98 0089
SR No.521353
Book TitlePrakrit Vidya 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1998
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size3 MB
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