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सम्राट् खारवेल की अध्यात्मदृष्टि
-श्रीमती रंजना जैन इहलोक और परलोक दोनों को जो सुधार सके तथा लौकिक एवं आध्यात्मिक—दोनों दृष्टियों से जिनका जीवन अनुपम आदर्श रहा हो—ऐसे महान् पुण्यशाली व्यक्तित्व भारतीय इतिहास में अत्यन्त विरले ही हुये हैं। ऐसे महापुरुषों में अन्यतम थे ईसापूर्व द्वितीय शताब्दी में भारतभूमि की यशोगाथा को स्वर्णाक्षरों में अंकित कराने वाले दिग्विजयी सम्राट् खारवेल। यद्यपि भारतीय इतिहास की श्रृंखला में उनका कोई विशेष उल्लेख नहीं है तथा उनकी पूर्ववर्ती एवं परवर्ती वंश-परम्परा का भी कोई विवरण पर्याप्त परिश्रम के बाद भी आज उपलब्ध नहीं है; तथापि सम्राट् खारवेल के गरिमामयी व्यक्तित्व एवं यश:काय कृतित्व की गौरवगाथा का तिथिक्रम से ब्यौरेवार वर्णन आज हमें उपलब्ध है। इसका एकमात्र आधार है उनका ‘कुमारी पर्वत' ('उदयगिरि'-उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर के निकटस्थ) पर स्थित हाथीगुम्फा' में विद्यमान विश्व का विशालतम शिलालेख, जिसमें इनके सम्पूर्ण जीवन का वृत्तान्त सूत्रात्मक शैली में भारतीय इतिहास के इस कालखंड को संजीवनी प्रदान कर रहा है। - इसमें उन्होंने अपनी अखंड-अपराभूत दिग्विजय, अपार यशोपार्जन, राष्ट्रहित एवं प्रजाहित के कार्यों का जो विवरण प्रस्तुत किया है; उसके बारे में विद्वानों एवं अनुसन्धाताओं ने काफी कुछ लिखा है। उससे जनसामान्य बहुत सीमा तक इनके बारे में परिचित हो सके हैं। यद्यपि उनकी आध्यात्मिक दृष्टि भी इस कालजयी शिलालेख में बहुत स्पष्टत: उत्कीर्णित है, फिर भी विद्वानों ने इस विषय में कोई उल्लेख तक नहीं किया है। अत: इस संक्षिप्त आलेख में मात्र इसी बिन्दु पर कतिपय तथ्य प्रस्तुत कर रही हूँ। ___सम्राट् खारवेल ने मगध-विजय के क्रम में वहाँ के राजा 'वसहतिमित्त' (वृहस्पतिमित्र) को अपने पराक्रम से चरण-विनत किया एवं परमपूज्य आदि तीर्थंकर ऋषभदेव की प्राचीन प्रतिमा (कलिंग जिन) को सादर वापस लाया तथा भव्य जिनालय में रत्नजटित गर्भगृह विदिका) में उसे विराजमान कराया। तब इस उपलक्ष में उसने 'कल्पद्रुम' का महान् विधान (महापूजा) किया तथा प्रजाजनों को 'किमिच्छिक दान' दिया। साधुओं (दिगम्बर जैन श्रमणों) के लिए गुफायें एवं वसतिकायें भी बनवायीं, जिनमें रहकर वे अपनी तप:साधना कर सकें। ___ कहा जाता है कि प्रत्येक सफल पुरुष के पीछे किसी न किसी नारी का योगदान अवश्य होता है। सम्राट् खारवेल भी इस सिद्धान्त का अपवाद नहीं था। उनकी सहधर्मिणी रानी सिंधुला की प्रेरणा एवं परामर्शों से उसके जीवन में कई नवीन घटनाक्रम घटित हुये। जहाँ उसने उसकी दिग्विजय में पदे-पदे साथ दिया तथा खारवेल को ‘महामेघवाहन
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर'98
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