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(समाचार दर्शन
भुवनेश्वर में ‘खारवेल महोत्सव' व राष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन
जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के निर्वाण दिवस पर यहाँ सूचना विभाग सभागार' में आयोजित तीन दिवसीय खारवेल-महोत्सव एवं राष्ट्रीय गोष्ठी में मुख्य अतिथि उड़ीसा के राज्यपाल महामहिम सी० रंगराजन ने कहा कि “भारतीय संस्कृति पर जैनधर्म का व्यापक प्रभाव है और वह उसका अभिन्न अंग है। उड़ीसा में उसका अत्यंत गौरवशाली इतिहास रहा है। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में सम्राट् खारवेल कलिंग का ऐसा ही एक प्रतापी जैन सम्राट् था, जिसने सारे भारत को एक सूत्र में बांधकर विशाल कल्याणकारी शासन की स्थापना की थी।"
इस कार्यक्रम का आयोजन ऋषभदेव प्रतिष्ठान, दिल्ली एवं एडवांस सेंटर फॉर इण्डोलॉजिकल स्टडीज, भुवनेश्वर के संयुक्त तत्त्वावधान में किया गया। गोष्ठी में देश भर से आए तीस से अधिक प्रख्यात विद्वानों और पुरातत्वविदों ने सम्राट् खारवेल के संबंध में अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। साथ ही उड़ीसा में जैनकला, शिल्प, पुरातत्व तथा सम्राट खारवेल के कार्यों को दर्शानेवाली एक प्रदर्शनी का भी आयोजन हुआ। राष्ट्रसंत आचार्यश्री विद्यानंद जी मुनिराज का इस संपूर्ण आयोजन को आशीर्वाद प्राप्त था।
राज्यपाल ने कहा कि “सम्राट् खारवेल के काल में जैन कला तथा संस्कृति का उड़ीसा में व्यापक रूप से विकास हुआ। राज्य सरकार ने उस महान् सम्राट् की स्मृति में यह वर्ष 'खारवेल वर्ष' के रूप में घोषित किया है, जिसमें पुरातत्व के महत्त्व के अनेक स्थलों को. संरक्षण प्रदान किया जायेगा। उन्होंने कहा कि हमें अपने गौरवशाली इतिहास को जानना चाहिए, किन्तु अतीत की भूलों से सबक लेना चाहिए, ताकि भविष्य में सावधान रहें। उदयगिरि पर्वत पर हाथीगुम्फा में जो जैन शिलालेख हैं, उनसे सम्राट् खारवेल की महानता का परिचय मिलता है। शासक के रूप में उन्होंने अपनी प्रजा का सदा ध्यान रखा और लोक कल्याण के कार्य किए। वह सभी धर्मों का आदर करते थे। उनके राज्य में सभी धर्म फले-फूले।" भगवान् ऋषभदेव को जैनधर्म का प्रवर्तक बताते हुए उन्होंने कहा कि "चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह के जिन सिद्धांतों का उपदेश दिया, वे आज भी प्रसंगिक हैं।"
सभा के अध्यक्ष साहू रमेशचंद्र जैन ने सम्राट् खारवेल को एक महान शासक बताते हुए कहा कि “खारवेल ने सदैव जनता की भलाई के कार्यों को महत्त्व दिया तथा देश को एक सूत्र में बांधा। उन्होंने भारत पर हमला करने वाले विदेशी आक्रमणकारियों को भी देश से बाहर खदेड़ा। उनके काल में कला और शिल्प का विकास हुआ। जैनधर्म का पालन करते हुए भी खारवेल ने सभी धर्मों को समान आदर दिया। वर्तमान में आचार्यश्री विद्यानंद जी मुनिराज ने सम्राट् खारवेल के प्राचीन गौरवशाली इतिहास की खोज की प्रेरणा दी है।"
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर'98