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________________ - करू -OOK सीमन्धरजिन स्तवन सुणो चंदाजी, सीमंधर परमातम पासे जाजो, मुज विनतडी, प्रेम धरीने एणी पेरे तुमे संभळावजो. जे त्रण भुवननो नायक छ, जस चोसठ इंद्र पायक छ, नाण दरिसण जेहने क्षायक छ - सुणो० (१) । जेनी कंचनवरणी काया छ, जस घोरी लंछन् पाये छे, पुंडरिकिणी नयरीनो राया छे- सुणो० (२) बार परषदा मांही बिराजे छ, जस चोत्रीश अतिशय छाजे छे, गुण पांत्रीश वाणीजे गाजे छे- सुणो० (३) भविजनने जे पडिबोहे छे, तुम अधिक शीतल गुण सोहे छे, रूप देखी भविजन मोहे छ- सुणो० (४) तुम सेवा करवा रसीयो छु, पण भरतमां दूरे वसीयो छु, महा मोहराय कर फसीयो छु- सुणो० (५) पण साहिब चित्तमां धरीयो छे, तुम आणा खड्ग कर ग्रहीयो छे, तो कांईक मुजथी डरीयो छे- सुणो० (६) जिन उत्तम पूंठ हवे पूरो, कहे पद्मविजय थाउं शूरो, तो वाधे मुज मन अति नूरो - सुणो० (७)। HAID) AMERIA Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.521012
Book TitleNandanvan Kalpataru 2004 00 SrNo 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtitrai
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Nandanvan Kalpataru, & India
File Size10 MB
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