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साध्वीश्री प्रियाशुभांजनाश्री
SAMBODHI
निदिध्यासन कर उनके गुणों का आदर-सत्कार करना उत्तम गुण भावना है । श्रेष्ठ पुरुषों के आलंबन के रूप में यहाँ पर धन व स्कन्द मुनि का चरित्र प्रस्तुत किया गया है ।
___ उत्तमगुणों में उत्तमोत्तम गुण – जिनधर्म है। जिनधर्म की उपस्थिति में ही शेष गुणों का सद्भाव व संरक्षण हो सकता है । अतएव अन्तिम बोधि दुर्लभ भावना का वर्णन किया है ।
१२. बोधि दुर्लभ भावना - बोधि अर्थात् धर्म सामग्री । इस संसार चक्र में मनुष्य भव, आर्य क्षेत्र, उत्तम कुल, रूप, आयुष्य, आरोग्य, बुद्धि, धर्म श्रवण, श्रद्धा एवं संयम का मिलना अत्यन्त दुर्लभ है - ऐसा बार-बार चिन्तन करना बोधि दुर्लभ भावना है। इस सन्दर्भ में श्रेष्ठी पुत्र व राजपुत्री के कथानकों का प्रतिपादन किया है। बारह भावनाओं के चिन्तन का फल -
फल अभिधान से पूर्व भावनाओं का चिन्तन किसके लिए हितकारी या अहितकारी हो सकता है इसकी विचारणा की गई है । मलधारी हेमचन्द्रसूरि का स्पष्ट मन्तव्य है कि भावनाओं का चिन्तन ज्ञानी के लिए ही कल्याणकारी होता है। अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए आचार्यश्री ने अनेक तर्क प्रस्तुत किये हैं । यहाँ पर ज्ञानी के लक्षण भी दिये गये हैं ।
ग्रंथान्त में भावनाओं के फल को अभिहित करते हुए कहा है कि भावनाओं का अविरत अभ्यास ममत्व एवं स्नेह का विनाश करता है तथा रोग आदि आपत्तियों में चित्त के सन्तुलन को बनाये रखता है। समभाव में स्थित साधक ध्यान की कक्षा में पहुंच जाता है, जहाँ वह अपने आत्म-बल से समस्त कर्मों का क्षयकर अजर, अमर, अक्षय, अनंत सिद्ध स्थान को प्राप्त करता है । सन्दर्भ :
१. तत्त्वार्थसूत्र, ७/७