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________________ वैशेषिकदर्शन में दःख का स्वरूप तथा प्रो. पाहिकृत दुःखवर्गीकरण की महत्ता धर्म चन्द जैन भारतीय परम्परा में दुःख : भारतीय परम्परा में यह तथ्य सभी दर्शनों को मान्य है कि दुःख का अनुभव चेतना को होता है । प्रतिकूल वेदनीय होने से यह किसी भी चेतना, पुरुष या आत्मा को प्रिय नहीं है। सभी इससे मुक्त होना चाहते हैं । बौद्धदर्शन में दुःख को चार आर्य सत्यों में प्रथम स्थान दिया गया है, तथा इसके अविद्या, तृष्णा आदि कारणों का भी प्रतिपादन किया गया है । इस दृष्टि से दुःख एक कार्य अथवा फल है। यदि कारण का निवारण कर दिया जाए तो दुःख से रहित हुआ जा सकता है। क्षणिकवादी बौद्धदर्शन में भी इस दुःख का अनुभव चेतना में ही स्वीकृत है, भले ही वह चेतना सन्तान रूप में ही प्रवाहित हो । सांख्यदर्शन में दुःख को प्रकृति का धर्म माना गया है, किन्तु उसका अनुभव चेतनाशील पुरुष को ही होता है । इसीलिये उसके आत्यन्तिक उच्छेद की आवश्यकता अनुभव की गई है । सत्त्व, रज एवं तमोगुणात्मिका प्रकृति में दुःख रजोगुण का कार्य है । सत्त्वगुण से सुख, रजोगुण से दुःख एवं तमोगुण से मोह प्रकट होता है । प्रकृति का कार्य होते हुए भी इसका अभिघात पुरुष को झेलना पड़ता जैनदर्शन के अनुसार भी दुःख का अनुभव चेतन आत्मा को होता है, किन्तु यह उसका निजीगुण या स्वरूप नहीं है। वेदनीय कर्म के कारण दुःख का उदय होता है । बाह्य पदार्थ एवं प्रतिकूल परिस्थितियाँ निमित्त कारण होती हैं । आत्मा यदि समभाव में रहे तो वह दुःख के प्रभाव से मुक्त हो सकता है । सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान पूर्वक की गई समभाव की साधना दुःख से मुक्ति का उपाय है । वेदान्तदर्शन में दुःख को अज्ञान या अविद्या का परिणाम स्वीकार किया गया है । इसमें ब्रह्म या आत्मा स्वरूपतः आनन्दमय है. दःख तो अज्ञान के कारण अनभव में आता है। न्याय-दर्शन में अक्षपाद गौतम ने कहा है कि मिथ्याज्ञान से राग-द्वेष आदि दोष उत्पन्न होते हैं, इन दोषों के कारण पाप प्रवृत्ति होती है, इस प्रवृत्ति से विभिन्न योनियों में जन्म होता है एवं जन्म के होने पर दुःख होता है । अतः जन्म ही दुःख का प्रमुख कारण स्वीकृत है । वैशेषिकदर्शन में प्रारम्भ से ही दुःख को आत्मा में रहने वाला गुण माना गया है, जो अधर्मरूपी अदृष्ट का फल है ।
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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