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________________ 172 साध्वीश्री प्रियाशुभांजनाश्री SAMBODHI हेतु कहा है कि 'मनुष्य के बन्धन और मुक्ति का कारण मन है । उसके विषयासक्त होने पर बन्धन और उसका निर्विषय होना ही मुक्ति है ।' बाह्य जगत में वैज्ञानिकों ने भावों के अचिन्त्य प्रभाव पर अनेकविध प्रयोग करके यह सिद्ध कर दिया है कि भावनाओं का प्रभाव न केवल स्व के ऊपर किन्तु पर के ऊपर भी पड़ता है । ऐसा ही एक प्रयोग केलीफोर्निया के एक कृषि वैज्ञानिक एलन फार्ड ने कर दिखाया । दुनिया में कंटकयुक्त गुलाब का पौधा तो सामान्यतया सर्वत्र पाया जाता है। लेकिन एलन ने भावना-प्रयोग के द्वारा गुलाब के प्राकृतिक स्वरूप को बदलकर उसे कंटकविहीन बना दिया । एलन के खेत में एक काटेदार सफेद गुलाब लगा था । एलन चाहता था कि वह पौधा निष्कंटव बन जाये । लेकिन अपनी इच्छा को पूर्ण करने हेतु एलन ने शस्त्र प्रयोग द्वारा काँटो को उखेड़ा नहीं क्योंकि वह पौधे को हानि पहोचायें बिना उसके स्वरूप का परिवर्तन करना चाहता था । दिन-प्रतिदिन वह उस गुलाब के पौधे के पास जाता और प्यार से उस पर हाथ फिराकर कहता गुलाब ! तुम कितने सुन्दर हो, मनमोहक हो, खुश्बुदार हो ! लेकिन तुम्हारे काटे बड़े ही पीड़ाकारक है, जिसके हाथ में लग हैं उसे कष्ट पहुंचाते हैं । तुम अपने काटे निकाल दो, निष्कंटक बन जाओ । चौथे महीने के प्रारम्भ में ही एलन का भावना प्रयोग सफल हो गया । उसने देखा कि गुलाब के काटे अपने आप झड़ने लग गये, कुछ ही दिनों में पूरा पौधा निष्कंटक हो गया । ऐसे अनेक प्रयोगों के बाद एलन ने एक पुस्तक लिखी- मिरेक्लस ऑफ थोट । इस पुस्तक में उसने विचार, भाव या भावना का विस्तार से वर्णन किया है। इसमें उसने लिखा है - 'मन की गहराई, सच्चाई, दृढ़ता, तन्मयता और प्यार से यदि कोई विचार किया जाता है तो वह आशानुरूप परिणाम अवश्य लाता है। भावना जब गुलाब का स्वभाव, गुण, धर्म बदल सकती हैं तो क्या अपने जीवन को, अपनी वृत्तियों को, अपने स्वभाव को नहीं बदल सकते ? अवश्य ही बदल सकते हैं । ___ इस प्रकार शुभाशुभ भावों का प्रभाव अन्य पदार्थों पर भी शुभाशुभ पड़ता है और स्व-परिवर्तन में भी भावों का प्रभाव पाया जाता है । मनोविज्ञान में ऑटोसज्जेशन (autosuggestion) नामक प्रक्रिया में व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण रूप से परिवर्तन कर लेता है । ऑटोसज्जेशन (autosuggestion) अर्थात् स्व को भावपूर्वक आदेश करना । जैसे यदि वह स्वयं को शांत करना चाहता है और स्वभाव शांत-समतामय बनना चाहता हो तो वह अपने आपको शांत रहने का आदेश देता रहता है । तब वह धीरे-धीरे शांति का अनुभव करने लगता है । इस प्रक्रिया में भी वस्तुतः मन के भावों का ही प्रभाव है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित विख्यात वैज्ञानिक वाल्टर हैस ने सृजनात्मक एवं निषेधात्मक भावों पर कई प्रयोग किये हैं । उन्होंने बताया है - विचारों से, भावों से हमारे शरीर के हार्मोन्स प्रभावित होते हैं, शरीर के भीतर जो नाड़ी तंत्र है, अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ हैं, वे प्रभावित होती हैं । जब सृजनात्मक या शुभ विचार करते हैं तो उनसे जो रसायन स्रवित होते है उनसे हमारे भीतर उत्साह, उल्लास जागता है। INised
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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