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ज्योति कुमावत
SAMBODHI
"रागमाला" प्राप्त हुई ।१९ निसारदीन के पुत्र साहिबदीन ने भी मेवाड़ शैली में अपना अमूल्य योगदान दिया । उसने रागमाला, गीतगोविन्द, रसिकप्रिया, भागवत और रामायण के चित्रों की एलबम बनाई । बख्तावर एक पारम्परिक चित्रकार था जो उदयपुर के समीप बेदला ठिकाने में कपड़ों पर जन्तुओं की आकृतियाँ बनाता था ।२१ मारवाड़ की कला में मुगल प्रभाव छन-छनकर आने लगा था। यहाँ के चित्रकारों में किशनदास, देवदास, शिवदास, गोपी तथा फतह मुहम्मद के नाम उल्लेखनीय है ।२२ बीकानेर की कला में मस्लिम प्रभाव सर्वाधिक है। उस्ता हामिद रूकनद्दीन ने बीकानेर राजदरबार में रहकर आचार्य केशवदास की 'रसिकप्रिया' पर आधारित बीकानेर शैली के श्रेष्ठ चित्र बनाए ।२३ १६०६ ई. में नूर मोहम्मद पुत्र शाह मोहम्मद का बनाया बीकानेर शैली का सर्वाधिक पुराना व्यक्ति चित्र है ।२४ बीकानेर शैली को समृद्ध बनाने में मुस्लिम कलाकारों का सर्वाधिक योगदान रहा। अजमेर में भी चाँद, तैय्यब, अल्लाबक्श, उस्ना
और साहिबा आदि चित्रकारों ने चित्रसृजना की ।२५ ढूंढाड़ शैली का प्रमुख केन्द्र जयपुर रहा । दरबारी चित्रकार मोहम्मद शाह व साहिबराम के समय जयपुर चित्रशैली ने अपना पूर्ण स्वतंत्र रूप प्राप्त कर लिया था ।२६ जयपुर के समीप स्थित उनिराया मीराबक्श की कर्मस्थली रहा जिसने श्रीमद् भागवत् की सचित्र प्रति का निर्माण किया ।२७ वहीं कोटा में उसमान, लुकमान जैसे चित्रकारों ने चित्रण कार्य किया । परम्परागत रूप से कला सृष्टि की रचना करते हुए इन कलाकारों ने आगे आने वाले कलाकारों को प्रेरणा और
अभिव्यक्ति का साहस दिया जिसके परिणाम स्वरूप आज भारत की चित्रकला का सारांश मुस्लिम चित्रकारों के वर्णन बिना अधूरा है । आधुनिक भारतीय चित्रकारों में एक प्रमुख नाम अकबर पद्मसी कहा है जो मुख्यतः पेंटर है पर उन्होंने मूर्तिशिल्प सरीखे माध्यमों में उल्लेखनीय काम भी किया ।२८
मदर टेरेसा एम.एफ. हुसैन की एक कृति