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________________ Vol. XLI, 2018 मुसव्विरी के मुकाम और राजस्थान 147 या मूर्ति होती है, उसमें फरिश्ते प्रवेश नहीं करते.... जिस दिन मुर्दे पुनः जीवित होकर खड़े होंगे उस दिन मूर्ति की रचना करने वालों को ईश्वर सबसे अधिक दण्डनीय समझेगा..... और जो उन्हें बनाने वाले है वे उस दिन दण्डित किये जायेगें उनसे कहा जायेगा "जो तुमने बनाया है, उसमें जीवन का प्रवेश करो ।'६ यह एक अशुद्ध अर्थ निरूपण है कुरआन में एक भी शब्द जीवन्त वस्तुओं के प्रतिरूपण के पक्ष में या विपक्ष में लिखा ही नहीं गया है लेकिन यह भी सत्य हे कि यह आठवीं शती के मध्य एक निषेध प्रचलित हो गया और इस्लामिक विचारधारा का एक अंग बन गया जो न पूरी तरह से नकारा गया और न पूरी तरह से अपनाया गया । जीवन्त वस्तुएं न चित्रित करने का जिक्र हदीसों में किया गया है। मोहम्मद साहब की मृत्यु के पश्चात् उनकी उन सूक्तियों एवं विचारों का संकलन किया गया हो जो कुरआन में उपलब्ध नहीं थे। इन्हें "हदीस" कहा गया । कुरआन एवं हदीस का सम्मिलित नाम शरीअत (श) है । प्रत्येक मुसलमान चाहे यह खलीफा या सम्राट ही क्यों न हो शरीअत के नियमों से सीमित है। धर्म शास्त्रियों ने इसकी व्याख्या का ही अधिकार स्वीकार किया है। इनमें परिवर्तन का अधिकार किसी को नहीं है । ये हदीसें हमें हजारों की तादाद में प्राप्त होती है और इनका अध्ययन कर व्याख्या करना सिर्फ उलेमाओं (इस्लामी धर्म शास्त्री) के ही वश का कार्य है। जब इन उलेमाओं ने हदीसों का संकलन किया तब बेहद बारिकी से छान-बीन की परन्तु इस कार्य में त्रुटि की सम्भावना अवश्य बनी रहती है। इसलिए उलेमाओं ने हदीसों की व्याख्या करते वक्त इन्हें कुछ वर्गों में विभाजित कर दिया जैसे मुख्य हदीस, गढ़ी हुई या कमजोर हदीस। जीवन्त वस्तुओं के प्रतिरूपण सम्बन्धी हदीस इन्हीं कमजोर में हदीसों में गिनी जाती मुस्लिम समाज का एक बहुत बड़ा तबका इन निषेधों को स्वीकार करता है तो वही एक तबका ऐसा भी है जो इसे स्वीकार नहीं करता। १२वीं सदी के लेखक मौलवी नवी ने लिखा है कि इस्लाम धर्म के अनुसार ईश्वर की सृष्टि का अनुकरण करके तस्वीरें बनाना गुनाह का काम है। इसलिए जो लोग भी कपड़े, कालीन, सिक्के या बरतन पर चित्र बनाते है वे इस्लाम के नियम से गुनहगार है। इस निषेध का परिणाम यह हुआ कि साधारण मुस्लिम सभ्यता में मूर्तिशिल्प और चित्रकार को कभी भी प्रधानता नहीं मिली। मुसलमानों ने चित्रों और मूर्तियों का केवल भंजन ही नहीं किया। सामान्य मुस्लिम जनता ललितकला मात्र से उदासीन रहने लगी। बाद में इस्लाम में जो भी उदारता आई, वह ईरान के प्रभाव के कारण। इसी भावना से प्रेरित मुस्लिम समाज कलाओं की ओर आकृष्ट हुआ एवं चित्र और संगीत ये वर्जित नहीं रहे ।११ उत्तरोत्तर मुस्लिम समुदाय में कला के प्रति आकर्षण में वृद्धि होती गई और वे ललित कलाओं में रूचि प्रदर्शित कर अपने रचनाकौशल का प्रदर्शन करने लगे। मुगल शासक अकबर ने यहाँ तक कहा कि "बहुत से लोग चित्रों से घृणा करते है, किन्तु मैं ऐसे लोगों को नापसंद करता हूँ। मेरा ख्याल है कि ईश्वर को पहचानने का चित्रकारों का अपना अलग ढंग होता है । चित्रकार जब जीवित प्राणियों के चित्र बनाता है, तब अवयवों को एक-एक कर यथास्थान बिठा देता है किन्तु सच के अन्त में वह यह सोचे बिना नहीं रह सकता कि मूर्ति में प्राण डालने का काम भगवान् ही कर सकते
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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