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मोहित कुमार मिश्र
SAMBODHI
हैं। अतः एक धातुरूप (क्रियापद) में कर्ता का पुरुष वचन तथा वाच्य-भेद के साथ क्रिया का काल
और वृत्ति (अर्थ) छिपा रहता है । पाणिनीयव्याकरणमें धातुओं की कुल संख्या लगभग १९४३ है । इन धातुओं को आचार्य पाणिनि ने दस गणों में विभाजित किया है। इन गणों के अपने गणचिह्न होते हैं जिन्हें 'विकरण' कहते हैं। इन्हीं विकरणों के प्रयोग से धातुओं को तद्गणीय कहा जाता है । जैसे - भ्वादिगण का शप्१८, अदादिगण का शप्१९ (शप्लुक्), जुहोत्यादिगण का श्लु२०, दिवादिगण का श्यन्२१, स्वादिगण का श्नु२२, तुदादिगण का श२३, रुधादिगण का श्नम्२४, तनादिगण का उ५, र्यादिगण का श्ना२६ तथा चुरादिगण का णिच्२७ विकरण होता है । धातुओं में व्याकरणिक प्रक्रिया के लिए विभिन्न प्रकार के विकरणों (मध्य प्रत्यय) का योग होता है, परिणामतः धातुओं का रूप गुणादि के कारण परिवर्तित हो जाता है। फारसी में धातुओं को 'मसदर' की संज्ञा दी जाती है । फारसी में धातुओं की संख्या के विषय में कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन लकारों में विकरण चिह्न प्रयुक्त होते हैं, परन्तु इन मध्य प्रत्ययों (विकरण) से क्रियारूपों में कोई परिवर्तन नहीं आता है । उपलब्ध धातुओं में भी सभी धातुएँ संस्कृत से साम्य नहीं रखती हैं फिर भी संस्कृत भाषा के साथ फारसी धातुओं की समानता को दृष्टिगत करने से ऐसा प्रतीत होता है कि फारसी संस्कृत से निर्गत एक तरह की प्राकृत भाषा है।
काल
काल अतीव व्यापक एवं महत्त्वपूर्णशब्द है । वर्तमान, भूत, भविष्य आदि के व्यवहार का हेतु काल कहलाता है –'अतीतादिव्यवहारहेतुः कालः' ।२८ क्रिया सदैव काल सापेक्ष होती है । वाच्य में 'करता है', "किया', 'करेगा' इत्यादि पद क्रिया के समय को सूचित करते हैं, जिसे 'काल' कहते हैं । क्रिया की पूर्णता या अपूर्णता तथा क्रिया की क्रमवत्ता को देखकर काल की अनुमिति कर ली जाती है। महर्षि पतञ्जलि भी काल को क्रिया के आश्रित मानते हुए लिखते हैं- 'नान्तरेण क्रियां भूतभविष्यद्वर्तमानकालाः व्यज्यन्ते' ।२९ काल यद्यपि अविच्छिन्न है, फिर भी व्यवहारार्थ संस्कृत भाषामें सात काल कहे गये हैंवर्तमान (भवति), अनद्यतन-भूत (अभवत्), अद्यतन या आसन्नभूत (अभूत्), परोक्षभूत (बभूव), पूर्णपरोक्षभूत (अबभूवत्), सामान्य-भविष्य (भविष्यति) और अनद्यतन-भविष्य (भविता) । संस्कृतवैयाकरण इन्हें दस 'लकारों' (लट्, लिट्, लङ्लुङ् आदि) के द्वारा प्रकट करते हैं । जिनमें से लट्लकार का प्रयोग मात्र वेद तक सीमित है लोक में इसका प्रयोग नहीं होता । लिङ्लकार के दो भेद हैं -विधि एवं आशीर्लिङ् अतः गौण रूप से लोक में भी दस लकार ही प्रयुक्त होते हैं । फारसी में काल को 'जमान' कहा जाता है, जैसे- वर्तमान काल को 'जमाने-हाल'। फारसी में नौ लकार माने गये हैं - Present Indefinite Tense
अखबारी Present Subjunctive Tense
मुज़ारे इल्तज़ामी Past Indefinite Tense
माजी मुतलक/सादे Past Continuous Tense
माजी इस्तमरारी/नातमाम Present perfect Tense
माजी नकली/करीब