SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्य दर्शनों के ज्ञान की आवश्यकता वीरसागर जैन तत्त्वज्ञान की निर्मलता या स्पष्टता के लिए अन्य दर्शनों का भी थोडा-बहुत ज्ञान अवश्य होना चाहिए, किन्तु आजकल अधिकांश लोग इस ओर ध्यान नहीं देते, वे अन्य दर्शनों का ज्ञान नहीं रखते। वे मात्र ‘अपना' ही एक दर्शन पढ़ते हैं और अन्य दर्शनों के ज्ञान का प्रयास भी नहीं करते । यहाँ तक कि कुछ लोग तो अन्य दर्शनों के ज्ञान को अनावश्यक, अनुपयोगी या समय की बर्बादी भी बताते हैं, जो कि एक बड़ी भयावह स्थिति है। प्राचीन काल में ऐसा नहीं होता था, सभी लोग सभी दर्शनों का ज्ञान रखते थे। वे जानते थे कि सभी दर्शन एक-दूसरे के ज्ञान में सहायक हैं, अन्य दर्शनों को समझे बिना किसी एक दर्शन का भी यथार्थ ज्ञान नहीं होता। दरअसल, प्रत्येक शास्त्र में पूर्व पक्ष के साथ ही उत्तर पक्ष को समझाया जाता है, पूर्व पक्ष में अन्य दर्शनों की मान्यताएं रखी जाती हैं और फिर उत्तर पक्ष में उनका निराकरण करके अपना दर्शन स्थापित किया जाता है, किन्तु यदि हम पूर्व पक्ष को ही ठीक से नहीं समझे होंगे तो उत्तर पक्ष को कैसे समझेंगे ? पूर्व पक्ष के बिना उत्तर पक्ष समझ में नहीं आ सकता । जिसे पूर्व पक्ष जितना अच्छा समझ में आएगा, उसे उत्तर पक्ष भी उतना ही अच्छा समझ में आएगा। लक्षण-निर्माण के समय भी आचार्यगण अन्यमत-निराकरण की दृष्टि से संक्षेप में सूत्ररचना करते हैं, जिसे अन्य मतों का ज्ञाता व्यक्ति ही ठीक से समझ-समझा सकता है । जैसे - 'स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम्' - परीक्षामुखसूत्र १/१ प्रमाण के इस लक्षण में एक-एक पद के द्वारा एक-एक दर्शन की मान्यता का निराकरण किया गया है। यथा - स्व' पद अस्वसंवेदनवादी सांख्य. परोक्षज्ञानवादी मीमांसक और ज्ञानान्तरप्रत्यक्षवादी योग के निराकरण हेतु है । 'अपूर्व' पद धारावाहिक ज्ञानवादियों के निराकरण हेतु है । 'अर्थ' पद बाह्य अर्थ को न मानने वाले विज्ञानाद्वैतवादी, पुरुषाद्वैतवादी, शून्याद्वैतवादी के निराकरण हेतु है । 'व्यवसायात्मक' पद निर्विकल्पज्ञान वादी बौद्धों के निराकरण हेतु है । 'ज्ञान' पद अज्ञानरूप सन्निकर्ष आदि को प्रमाण माननेवाले नैयायिकों के निराकरण हेतु है । (-प्रमेयरत्नमाला, पृष्ठ १४ )
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy