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________________ Vol. XLI, 2018 ब्रह्मकारणतावाद एवं सृष्टि : एक आलोचना 101 घोषित कर दिया है । अतः इस दर्शन के अनुसार जिस प्रकार विविधता केवल प्रतीति है, वास्तविकता नहीं है, उसी प्रकार अचेतनता भी केवल प्रतीति है, वास्तविकता नहीं । किन्तु ऐसा मानने पर पुनः अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा जो तर्कसंगत नहीं है । (११) पुनश्च माया से उपहित ब्रह्म से जो सृष्टि-क्रम का वर्णन किया गया है उसमें कहीं ऐसा प्रतीत नहीं होता कि यह एक मिथ्या प्रतीति का क्रम है, वह तो वास्तविक जैसा प्रतीत होता है। प्रतीतियों में इस प्रकार का कारण-कार्य क्रम होता भी नहीं कि एक वस्तु से दूसरी वस्तु, दूसरी से तीसरी वस्तु और तीसरी से चौथी आदि उत्पन्न होती चली जाये । किन्तु पंचीकरण प्रक्रिया के द्वारा आकाश से वायु, वायु से तेजस्, तेजस् से जल तथा जल से पृथ्वी की उत्पत्ति के सिद्धान्त को किसी प्रकार युक्ति-संगत नहीं माना जा सकता । क्योंकि वर्तमान का आधुनिक विज्ञान इस बात की पुष्टि नहीं करता । भिन्न-भिन्न परमाणुओं के परस्पर मिश्रण से सूक्ष्म से स्थूल पदार्थों की रचना होना कुछ सीमा तक तर्कसंगत प्रतीत होता है । परन्तु पंचीकरण के आधार पर पंच महाभूतों का निर्माण होना वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पूर्णतया असिद्ध है। उपसंहार उपर्युक्त आलोचना से यह स्पष्टतः ज्ञात होता है कि यद्यपि अद्वैत-वेदान्त दर्शन भारतीय दार्शनिक संप्रदायों में स्वकीय स्वतन्त्र मौलिक विचारधारा के कारण एक उच्च शिखर पर प्रतिष्ठित है, तथापि इस दर्शन के द्वारा प्रतिपादित ब्रह्मकारणतावाद एवं सृष्टि सिद्धान्त वैज्ञानिक तथा व्यावहारिक दृष्टिकोण से पूर्णतया संपुष्ट व स्वीकृत नहीं हो पा रहे हैं। समग्र संसार में एक ही ब्रह्मवाद को अवस्थापित करने के प्रयास में इस दर्शन द्वारा मायावाद रूपी एक अनोखी तथा अनसूझी विचार का आरोपण करना तथा उस माया के प्रभाव से समस्त जगत् की स्थिति का प्रकट होना - किसी भी वेदान्तज्ञाता अथवा मनुष्य के ज्ञान की परिधि से बहिर्भूत है । अन्यथा, विज्ञान द्वारा परीक्षित शाश्वत ऊर्जात्मक पदार्थ से निर्मित परिवर्तनशील परन्तु सत्य जगत् का आभास अथवा प्रतीति के रूप में ग्रहण करना स्वयं के अस्तित्व को भी जैसे धूलिसात् करना है। शंकराचार्य तथा उनके समर्थकों द्वारा प्रदर्शित अद्वैत-वेदान्त दर्शन की व्याख्या पद्धति त्रुटिपूर्ण प्रतीत होती है एवं यह दर्शन विषय-वस्तु का सम्यक् रीति से तार्किकतया प्रतिपादन करने में असमर्थ दृष्टिगोचर हो रहा है । अतः एक ज्ञानोपयोगी, सैद्धान्तिक तथ्य को वैज्ञानिक रीति से परिपुष्ट कर व्यवहारात्मक तथा प्रायोगिक धरातल पर पहुँचा देना ही वास्तव में दर्शन की सार्थक दर्शनता है। सन्दर्भ सूची १. ब्र.सू. शा.भा. १.१.२ २. यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते, येन जातानि जीवन्ति, यत् प्रयन्त्यभिसंविशन्ति... तद् ब्रह्म । तैत्ति. उप. ३.१ ३. ब्र.सू. शा.भा. ४.३.१४ ४. वाङ्मनसातीततत्त्वमपि ब्रह्मणो नाभावाभिप्रायेणाभिधीयते । ब्र.सू. शा.भा. ३.२.२२
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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