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Vol. XXXVI, 2013
स्वातन्त्र्योत्तर भारत में पाण्डुलिपियों का संग्रह एवं सूचीकरण
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British Museum and the Victoria and Albert Museum का संकलन एवं सम्पादन किया । इस सची का प्रकाशन The British Library and Institute of Jainology, लण्डन से किया गया । इस सूची में विस्तृत भूमिका के साथ-साथ, सन्दर्भसूची, पाण्डुलिपियों के अंश एवं चित्र भी दिये गये हैं । तीन भागों में प्रकाशित यह सूची संस्कृत भाषा के अनेक ग्रन्थों का विवरण प्रस्तुत करती है। इस सूची में १०८३ पाण्डुलिपियों का विवरण है तथा १४२६ शीर्षकों का समावेश है। निश्चित रूप से यह सूची भारतीय मनीषा के प्रति रुचि रखने वालों के लिये सन्दर्भ एवं सूचना का साधन है। इस के माध्यम से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि शास्त्रीय परम्परा को अधिक समृद्ध करने के लिये कितने परिश्रम की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में योगदान के लिये पूज्य कान्तिविजय जी महाराज, पूज्य चतुर्विजय जी महराज एवं पूज्य पुण्यविजय जी महाराज को नमन एवं स्मरण करना हम सबका पुनीत कर्तव्य है। आगम प्रभाकर पूज्य मुनि पुण्यविजय जी महाराज को नमन एवं संरक्षण के क्षेत्र में अद्वितीय श्रम किया। इस सूची के प्रकाशन में Ernst Wald Schmid (1897-1985) एवं स्व. प्रो. त्रिपाठी का योगदान महत्त्वपूर्ण है । प्रो. त्रिपाठी के प्रयास से ही १९७५ में Catalogue of the Jain Manuscripts at Strasburg of CT Brill, Indologiua Berolinesis, Leiden से हुआ था। इस तरह से यथासम्भव प्रकाशित सूचियों के माध्यम से यहाँ सूचना प्रस्तुत की जा रही है। बहुत सम्भावना है कि कुछ अन्य सूचियों का भी प्रकाशन हुआ हो लेकिन सूचना के अभाव में मैं सम्मिलित नहीं कर सका। इसके पूरक के रूप में यह प्रयास किया जायेगा कि उन सूचियों के विषय में भी विस्तार से सूचना दिया जाय । एक बात निश्चित है कि पिछले पाँच वर्षों में संस्थाओं का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ है। कई संस्थानों में कम्प्युटरीकृत सूची उपलब्ध भी है। इसके अन्तर्गत बी. एल. इन्स्टीट्यूट आफ् इण्डोलोजी, दिल्ली तथा कोबा के संग्रह की सूची को रखा जा सकता है। इसमें डॉ. बालाजी गणोरकर, निदेशक, बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलोजी के परिश्रम का अनुकरण करना चाहिए। सभी संस्थान तथा व्यक्तिगत संग्रहों की तालिकाक्रम में एकीकृत सूची बनाने के क्षेत्र में राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन ने तीस लाख पाण्डुलिपियों का डेटा तैयार करके अभूतपूर्व कार्य किया है । आशा है अगले कुछ वर्षों में इन सूचियों के कम से कम २०० भाग हमारे सामने होंगे एवं उस स्थिति में विश्व के बौद्धिक रंगमञ्ज पर राष्ट. सर्वथा एक नवीन बौद्धिक चेतना के साथ प्रस्तत होगा। आवश्यकता केवल यह है कि इस कार्य को अतिमहत्त्वपूर्ण समझा जाय और श्रेष्ठ विद्वानों के मार्गदर्शन में विवरणात्मक सूची ही प्रकाशित की जाय एवं प्रत्येक भाग के साथ भूमिका में विशिष्ट पाण्डुलिपियों पर अलग से सामग्री प्रस्तुत की जानी चाहिए ।
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