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२००३
२००४
२००६
Jain Education International
विजयशंकर शुक्ल
- Science texts in Sanskrit in the Manuscripts Repositories of Kerala and Tamilnadu शीर्षक से राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली से किया गया । इसमें ३३४७ पाण्डुलिपियों का विवरण है। इसके पहले भी राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, गंगानाथ झा परिसर, इलाहाबाद की लगभग दस हजार पाण्डुलिपियों की सूची का कैट्लाग पाँच भाग में प्रकाशित कर चुका है ।
SAMBODHI
२००० में ही एक सूची जो वैष्णव आगमों की पाञ्चरात्र परम्परा में सम्बन्धित है, का प्रकाशन स्वामिनारायण अक्षरपीठ, शाहीबाग, अहमदाबाद से Catalogue of Pancaratra Samhita शीर्षक से किया गया । इसका संकलन एवं सम्पादन साधु परमपुरुषदास एवं साधु श्रुतिप्रकाश दास जी ने किया है ।
: सम्भवत: राष्ट्र के सबसे सम्पन्न पाण्डुलिपि संग्रहालय, आचार्य श्री कैलाससागर सूरिं ज्ञान मन्दिर में उपलब्ध पाण्डुलिपियों की सूची का प्रकाशन कैलांस सागर ग्रन्थसूची (Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts/Descriptive Catalogue of Manuscripts preserved in देवार्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भण्डागार) शीर्षक से प्रारम्भ हुआ । इसके द्वितीय एवं तृतीय भाग का प्रकाशन २००४ में हुआ । राष्ट्र का यह सबसे समृद्ध पाण्डुलिपि संग्रहालय विना किसी शासकीय सहायता के सबसे अधिक व्यवस्थित एवं संरक्षित है । यदि यह संस्थान इसी तरह जैन विद्या के निष्णात आचार्यों के माध्यम से इन ग्रन्थों की प्रकाशन योजना प्रारम्भ करे तो निश्चित रूप से एक प्रशंसनीय मानक उपस्थित होगा एवं अन्य संस्थानों के लिये प्रेरक संस्था के रूप में उपस्थित होगी ।
: श्री समर्थ वाग्देवता मन्दिर, धुले में उपलब्ध पचास पाण्डुलिपियों की सूची का प्रकाशन हस्तलिखित बाडांची, विवरणात्मक सूची शीर्षक से प्रकाशित हुआ ।
इसी वर्ष A Descriptive Catalogue of Sanskrit Manuscripts in the Sanskrit Sahitya Parisad, कोलकाता से प्रकाशित हुआ जिसका संकलन महामहोपाध्याय मधुसूदन चक्रवर्ती ने किया तथा सम्पादन प्रो. देवव्रतसेन शर्मा ने । इस सूची का प्रकाशन संस्कृत साहित्य परिषद् से किया गया ।
: ब्रिटिश लाइब्रेरी, लण्डन एवं वहाँ की अन्य संस्थाओं के पास जैन पाण्डुलिपियों का संग्रह है एवं यह अच्छी तरह सुरक्षित भी है । यद्यपि कुछ उपलब्ध सूचियों के होते हुये भी इनका ज्ञान बहुत लोगों को नहीं है । इनका विश्लेषणात्मक परिचय आवश्यक था। इस क्षेत्र में विशेष प्रयास पूज्य मुनिराज श्री जम्बूविजय जी महाराज के द्वारा प्रारम्भ किया गया । उनके मन्तव्य को ध्यान में रखते हुये डॉ. नलिनी बलबीर, श्री कन्हैया लाल वी. सेठ, डॉ. कल्पना के सेठ एवं डॉ. चन्द्रभाल त्रिपाठी ने Catalogue of Jain Manuscripts of the British Library including the holding of the
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