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________________ 200 १९७८ - ९६ Jain Education International विजयशंकर शुक्ल SAMBODHI १३ के अन्तर्गत ६४४ पाण्डुलिपियों के विवरण के साथ १९८७ में भाग-७ तथा भाग१२ का प्रकाशन हुआ । १९८७ में ही भाग - १५ तथा १९८८ में भाग - १४ का भी प्रकाशन हुआ । इस तरह डो. मल्लदेवरू ने ११ भागों के सम्पादन एवं प्रकाशन की योजना को साकार किया । दुर्योगवश डॉ. मल्लदेवरु का निधन हो गया लेकिन इस योजना को डो. के. गोपालचार् जो विश्वविद्यालय में मल्लदेवरू के उत्तराधिकारी थे, ने आगे बढ़ाया एवं उनके प्रधान सम्पादकत्व में १९९० में भाग - १६ तथा भाग - १७ का प्रकाशन हुआ । इस तरह यहाँ से ५२,३१९ पाण्डुलिपियों की सूची सामने आयी । विषय की दृष्टि से भी यह संग्रह वैविध्य पूर्ण है। वैदिक वाङ्मय से लेकर शान्ति, पूजा, व्रतकथा, आर्षस्तोत्र, पद्य, गद्य, कथा, चन्पू, शिल्प, रत्नशास्त्र, दर्शनशास्त्र, अर्थशास्त्र, अद्वैत, अनुभवाद्वैत, विशिष्टाद्वैत, शैव, वीरशैव, आयुर्वेद, वेदान्त, आगम (शैव, वैखानस, पाञ्जरात्र, तन्त्र) एवं मन्त्रशास्त्र की पाण्डुलिपियाँ यहाँ के संग्रह में । इन्स्टीट्यूट के संग्रह में महारांजा मैसूर के संग्रह की श्रीतत्त्वनिधि पाण्डुलिपि का सम्पादन एवं प्रकाशन यहाँ के विद्वानों ने किया है। जिसके तीन भाग प्रकाशित हो चुके हैं। नौ निधियों पर यह ग्रन्थ सम्पूर्ण सामग्री प्रस्तुत करता है। सचित्र पाण्डुलिपि की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ भारतीय मनीषा के प्रत्येक अध्येता के लिये उपयोगी सिद्ध हो सकता है। जिस तरह से इस नगर के माध्यम से विद्या का संरक्षण होता चला आ रहा है उसी तरह आज भी प्रो. रा. सत्यनारायण, प्रो. पी. एस. फिलियोजा, डॉ. एच. वी. नागराजराव, डॉ. टी. सत्यनारायण, डॉ. जगन्नाथ, डॉ. एम. ए. जयश्री एवं श्री नरसिम्हन् जैसे श्रेष्ठ सम्पादक मैसूर में विद्यमान हैं । प्रो. रा. सत्यनारायण ने नर्तन निर्णय ( तीन भागों में), चतुर्दण्डी प्रकाशिका (दो भागों में) एवं रागलक्षण के सम्पादन एवं अनुवाद के साथ अपनी वृत्ति की विवेचना करके कलामूलशास्त्र ग्रन्थमाला को समृद्ध किया है। प्रो. फिलियोजा ने शैव आगम के प्रसिद्ध ग्रन्थ अजितमहातन्त्र (पाँच भागों में ) एवं स्वायम्भुवसूत्रसंग्रह का सम्पादन एवं अनुवाद का कार्य पूर्ण किया है । सभी ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं । : वृन्दावन शोध संस्थान, वृन्दावन के संस्थापक श्री आर. डी. गुप्ता १९६८ में इस संस्था की स्थापना के माध्यम से ब्रज संस्कृति को सम्पूर्णता के साथ उद्घाटित करने के क्रम में अनेक प्रयास किये जिसमें उनकी एक सफल परियोजना है - पाण्डुलिपियों का संग्रह, संरक्षण एवं प्रकाशना । इस संग्रह में संस्कृत पाण्डुलिपियों के साथ-साथ हिन्दी विशेष रूप ब्रज भाषा की पाण्डुलिपियाँ हैं । ब्रजभाषा की पाण्डुलिपियों की दृष्टि से यह संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय है । यहाँ की प्रथम सूची १९७८ में A Catalogue of Sanskrit Manuscripts in the Vrindavan Research Institute प्रकाशित हुई जिसका संकलन बी. हनुमन्ताचार् एवं सम्पादन डो. आर. डी. गुप्ता एवं # For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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