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१९६१
विजयशंकर शुक्ल
SAMBODHI इस हस्तलिखित ग्रन्थ सूची का प्रकाशन रसशाला प्रिटिंग प्रेस, गोंडल से किया गया जिसमें चार हजार पाण्डुलिपियों का विवरण है । भारत-इतिहास-संशोधक मण्डल, पूना में पाण्डुलिपियों का संग्रह तो है ही - साथ ही मराठा शासकों के अभिलेख भी हैं जो कि मोड़ी लिपि में है। मोड़ी लिपि की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इन सबकी एक संक्षिप्त विवरणात्मक सूची का प्रकाशन श्री गणेश खरे जी ने १९६० में किया था उसका प्रकाशन भारत इतिहास-संशोधनमण्डल-स्वीय-ग्रन्थमाला संख्या-९२ में पूना से किया गया । इस सूची में अठारह
हजार पाण्डुलिपियों का विवरण है। : जैसा कि पीठे लिखा जा चुका है कि बिहार में मिथिला प्राचीन काल से ही विद्या के प्रधान केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित रहा है। महाराजा दरभङ्गा ने अध्ययन की प्राचीन परम्परा को प्रोत्साहित किया । यहाँ के राज्य चन्द्रधारी संग्रहालय में सुरक्षित पाण्डुलिपियों की सूची का कैट्लाग दरभंगा से १९६१ से प्रकाशित हुआ जिसमें १५४ पाण्डुलिपियों का विवरण है । संग्रहालय में ५०० से अधिक हस्तलेख हैं। इसी वर्ष असम में Department of History and Antiquarian Studies, गुवाहाटी में सुरक्षित संस्कृत पाण्डुलिपियों की दो सूचियों का सम्पादन पी. सी. चौधरी ने किया जिसमें ४४३ पाण्डुलिपियों का विवरण है। जर्मनी के लिण्डेन म्यूझियम, स्टुटगार्ट में संगृहीत पाण्डुलिपियों की सूची निर्माण का कार्य वोन के. एल. यानर्ट ने तथा पाण्डुलिपियों के ४५ चित्रों का विवरण हीमो रों ने १९६१ में ही प्रस्तुत किया । राजस्थान में राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर की पाण्डुलिपियों की सूची का निर्माण कार्य १९५९ से ही प्रारम्भ किया जा चुका था लेकिन १९६१ में ८२९ पाण्डुलिपियों की दो सूचियों के प्रकाशन का कार्य राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला-संख्या-५५ के अन्तर्गत पूर्ण हुआ । इस सूची में स्वर्गीय पुरोहित हरिनारायण जी विद्याभूषण के संग्रह की पाण्डुलिपियाँ है । इसका सम्पादन श्री जी. बहुरा एवं श्री लक्ष्मीनारायण गोस्वामी दीक्षित जी ने किया है। : जर्मनी का प्रायः हर शहर भारतीय पाण्डुलिपियों से सूना नहीं है । स्टाटबिब्लियोथेक
मारबुर्ग में भी पाण्डुलिपियों का संग्रह है। ऐसी ४९५ पाण्डुलिपियों की सूची का प्रथम भाग वोन. के. एल. यानर्ट और वोन वाल्थर शूबिंग ने १९६२ में सम्पादित किया जिसका
प्रकाशन Wisebaden से Steiner ने किया । : खालसा कालेज, अमृतसर में उपलब्ध २४८ पाण्डुलिपियाँ जो फ़ारसी एवं संस्कृत भाषा
१९६२
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