________________
152
सागरमल जैन
SAMBODHI
२१.
परिहारो परमहिला परिग्गहारंभ परिमाणं ॥ दिसविदिसमाणपढमं अणत्थ दण्डस्य वज्जणं विदियं । भोगोपभोगपरिमाण इयमेव गुणव्वया तिण्णि ॥ सामाइयं च पढमं बिदियं च तहेव पोसहं भणियं । तीइयं च अतिहिपुज्जं चउत्थ सल्लेहणा अंते ॥ __ - चारित्तपाहुड २२-२६
ज्ञातव्य है कि जटासिंह नन्दी ने भी वराडगचरित सर्ग २२ में विमलसूरि का अनुसरण किया है । १७. देखिए जैन, बौद्ध तथा गीता के आधार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन (लेखक - डो. सागरमल जैन)
भाग-२, पृ. २७४
पउमचरियं, १०२११४५ १९. पउमचरियं, इण्ट्रोक्सन, पृ. १९, पद्मपुराण, भूमिका (पं. पन्नालाल), पृ. ३० । । २०. जो इमाओ (दिसाओ) अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ अणुदिसाओं, सोऽहं । आचारांग
१/१/१/१, शीलांकटीका, पृ. १९ । (ज्ञातव्य है कि मूल पउमचरियं में केवल 'अनुदिसाई'. शब्द है जो कि आचारांग में उसी रूप में है। उससे नौ अनुदिशाओं की कल्पना दिखाकर उसे श्वेताम्बर आगमों में अनुपस्थित कहना उचित नहीं है।)
देखिए, पउमचरियं ३/१३५-३६ २२. पउमचरियं ३/१३५-३६ २३. मुक्कं वासोजुयलं........... - चउपन्नमहापुरिसचरियं, पृ. २७३
एगं देवदूसमादाय........पव्वइए । – कल्पसूत्र ११४ २५. पउमचरियं भाग-१ (इण्ट्रोडक्सन पेज १९, फुटनोट ५) . २६. 'जिणवरमुहाओ अत्थो सो गणहेरहि धरिउं । आवश्यक नियुक्ति १/१० २७. देखे... पद्मपुराण (आचार्य रविषेण), प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ काशी, सम्पादकीय, पृ. ७ । २८. पउमचरियं, ३/६२, २१/१३ ।
(यहाँ मरूदेवी और पद्मावती के स्वप्नों में समानता है, मात्र मरुदेवी के सन्दर्भ में 'वरसिरिदाम' शब्द आया है, जबकि पद्मावती के स्वप्नों में 'अभिसेकदास' शब्द आया है - किन्तु दोनों का अर्थ लक्ष्मी
ही है।) २९. जैन साहित्य और इतिहास (नाथूराम प्रेमी), पृ. ९९ । ३०. णायधम्मकहा (मधुकर मुनि) प्रथम श्रुतस्कंध, अध्याय ८, २६ ।
पउमचरियं ४/५८, ५/९८ । ३२. पद्मपुराण (रविषेण), ४/६६, २४७ । ३३. देखें पउमचरियं २१/२२, पउमचरियं, इन्ट्रोडक्सन पेज २२ फुटनोट-३ । तुलनीय-तिलयोपण्णत्ती, ४/
६०९
२४.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org