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________________ G Vol. XXXVI, 2013 पुराणों में देवी सरस्वती तत्र तस्मिन् सप्त पञ्चाशत्के वाड्नामगणे सरस्वतीत्येत्स्यनाम्नः । संस्कृत साहित्य ज्ञान का विपुल भंडार है । इसमें वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण सम्मिलित हैं । इसमें प्रत्येक विषय का अपना विशिष्ट स्थान है जिनमें पुराणों का अपना एक अलग ही वैशिष्टय है । इनमें विविध देवी-देवताओं का विवेचन प्रस्तुत है यथा रुद्र, मरुत, पर्जन्य, सवितु, उषस, पुरुष, अग्नि, अपनांनपात्, प्रमुख है जिनमें सरस्वती देवी का भी अपना विशिष्ट स्थान है। सरस्वती देवी की विभिन्न पुराणों में अर्चना की गई है जिनमें सरस्वती का देवी रूप अपना विशेष महत्व रखता है । 131 पुराणों में सरस्वती को देवी के रूप में वर्णित किया गया है। शुभ मंगलादि कार्यो की प्रारम्भिक अवस्था में ब्रह्मा-विष्णु देवों के साथ सरस्वती की पूजा भी कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए की जाती है इसलिए सरस्वती की देवी रूप में पूजा की जाती है । विभिन्न पुराणंकारों ने सरस्वती देवी की अन्य देवी- देवतीओं के साथ अर्चना की है । अग्निपुराण में सरस्वती देवी की विविध देवी - देवताओं के साथ अर्चना करते हुए कहा है कि सरस्वती, गौरी,- पार्वती, गणेश, स्कन्ध, ईश्वर, ब्राह्मण, इन्द्र, वासुदेवादि को में नमस्कार करता है । - पुराणकारों ने सरस्वती की देवी रूप में अर्चना करते हुए कहा है कि जिनमें सावित्री, पार्वती, पृथवी, सरस्वती, शचि, गौरी, शिवा, संज्ञा, ऋद्धि, रोहिणी, धूमोर्णा, अदिति आदि देवियों को प्रणाम है । महषि वेदव्यास ने सभी देवियों का क्रम से वर्णन करते हुए कहा है कि गौरी, काली, उमा, भद्रा, दुर्गा, कान्ति, सरस्वती, वैष्णवी, लक्ष्मी, प्रकृति, शिखा, नारायणी का क्रमिक रूप से स्थान I अग्निपुराण में सरस्वती को देवी रूप में स्वीकार करते हुए कहा है कि सरस्वती देवी के हाथ पुस्तक दूसरे हाथ में माला व तीरसे हाथ में कमण्डल है व श्वेत वस्त्र धारण किये हुए है I ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी सरस्वती का देवी रूप में अन्य देवियो के साथ वर्णन किया गया है। अर्थात् ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक स्थान पर सरस्वती की उत्पत्ति भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से बताई गई है और वह उनकी शक्ति स्वरूपा है । सांख्यसिद्धांत के अनुसार सर्वप्रथम आत्मा तथा उसकी शक्ति मूल प्रकृति का वर्णन हुआ। आदिकाल में आत्मा निष्क्रिय एवं तटस्थ थी परन्तु कालान्तर में उसे सृजन की इच्छा उत्पन्न हुई । इसके परिणामस्वरूप उसने स्त्री एवं पुरुष का रूप धारण किया । यह स्त्री रूप ही प्रकृति कहा जाता है । यह प्रकृति रूप भी श्रीकृष्ण के इच्छानुसार दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती तथा सावित्री के रूप में पञ्चधा हो गया । ये प्रकृति के पांच रूप है जिनमें सरस्वती भी एक प्रकृति निष्किय तथा चेतना रहित है । पुरुष के सम्पर्क से वह सक्रिय तथा चेतनायुक्त हो उठती है तथा कार्य की जननी बन जाती है । गरुडपुराण में एक स्थान पर देवियों के क्रम का वर्णन करते हुए कहा है कि गौरी, काली, उमा, भद्रा, कान्ति, सरस्वती, मंगला, वैष्णवी, लक्ष्मी, शिव, नारायणी का ही क्रमिक रूप है । किन्तु गरुडपुराण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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