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तनूजा सिंह
SAMBODHI
मृण्मूर्तियाँ चिकनी मिट्टी की बनी हुई हैं और इन्हें शीघ्र टूटने से बचाने के लिये अग्नि में पका लिया गया तथा बाद में पोलिश की गयी है । गुप्तकाल में मृण्मूर्ति कला, बर्तनों व खिलौनों में नई-नई अलंकरण विधि व सौन्दर्य पनपा । जैन सूत्र के अनुसार पोसलपुर सछात पुत्र नायक धनिक कुम्हार की ५०० दुकानें थीं और मिट्टी के खिलौने कई प्रकार से बनते थे । ठोस व कुछ भरावदार साँचों से आदि पहले एक तरफा फिर दो पाटों वाला सांचे का प्रयोग हुआ । यह दो पाटों वाले साँचे वर्तमान में भी प्रयोग किये जाते हैं । फलक चित्रण में उनके उभरे हुए स्थानों पर रंग लगा दिया जाता था । भीटे की खुदाई में प्राप्त व भारत कला भवन में सुरक्षित समग्र सामग्री के महत्वपूर्ण विषय व सौन्दर्य की दृष्टि से उत्तम हैं । इसके अतिरिक्त काशी में राजघाट की खुदाई में कई खिलौनों के व स्त्री मूर्ति के अलंकरण के तरीके से पता चलता है कि ये सभी कुशल चित्रकारों द्वारा बनाये गये होंगे। इनके रंग लगाने की तकनीक में सर्वप्रथम मुल्तानी मिट्टी का एक पोत फेर कर उसके ऊपर लाल, पीला, हरा आदि रंगों से अलंकृत किया गया है ।
संदर्भ सूची
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आमेर संग्रहालय, जयपुर में संरक्षित एवं सुरक्षित
वही
बुलेटिन ऑफ एनशियेन्ट इण्डियन हिस्ट्री एण्ड आर्कियोलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ सागर नं. २, १९६८, आर. सी. अग्रवाल, 'वसुधारा पालकी इन नेशनल म्यूजियम', नई दिल्ली, आकृति संख्या ३, प्लेट नं. ५, पृ. सं. ७१
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