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________________ Vol. XXXVI, 2013 प्राकृत आगम साहित्य : एक विमर्श 117 किये गये तो उनमें भाषिक परिवर्तन आ गये । माथुरी वाचना में जो आगमों का स्वरूप तय हुआ था उस पर व्यापक रूप से शौरसेनी का प्रभाव आ गया था । दुर्भाग्य से आज हमे माथुरी वाचना के आगम उपलब्ध नहीं है, किन्तु इन आगमों के जो उद्धृत अंश उत्तर भारत की अचेल धारा यापनीय-संघ के ग्रन्थों में और उनकी टीकाओं मे उद्धृत मिलते है, उनमें हम यह पाते हैं कि भावगत समानता के होते हए भी शब्द-रूपों और भाषिक स्वरूप में भिन्नता है। आचारांग. उत्तराध्ययन. निशीथ. कल्प, व्यवहार आदि से जो अंश भगवतीआराधना की टीका में उद्धृत हैं वे अपने भाषिक स्वरूप और पाठभेद की अपेक्षा से वल्लभी के आगमों से किञ्चित् भिन्न हैं । ___ अतः वाचनाओं के कारण आगमों में ने केवल भाषिक परिवर्तन हुए, अपितु पाठान्तर भी अस्तित्व में आये हैं। वल्लभी की अन्तिम वाचना में वल्लभी की ही नागार्जनीय वाचना के पाठान्तर तो लिये गये. किन्तु माथुरी वाचना के पाठान्तर दिये हैं। किन्तु मेरा मन्तव्य इससे भिन्न है। मेरी दृष्टि में उनकी वाचना का आधार भी परम्परा से प्राप्त नागार्जुनीय वाचना के पूर्व के आगम रहे होंगे, किन्तु जहाँ उन्हें अपनी परम्परागत वाचना का नागार्जुनीय वाचना से मतभेद दिखायी दिया, वहाँ उन्होंने नागार्जुनीय वाचना का उल्लेख कर दिया, क्योंकि माथुरी वाचना स्पष्टतः शौरसेनी से प्रभावित थी, दूसरे उस वाचना के आगमों के जो भी अवतरण आज मिलते हैं उनमें कुछ वर्तमान आगमों की वाचना से मेल नहीं खाते हैं। उनसे यही फलित होता है कि देवधि की वाचना का आधार स्कंदिल की वाचना तो नहीं रही है। तीसरी माथुरी वाचना के अवतरण आज यापनीय ग्रन्थों में मिलते हैं, उनमें इतना तो फलित होता है कि माथुरी वाचना के आगमों में भी वस्त्र-पात्र सम्बन्धी एवं स्त्री तद्भव मुक्ति के उल्लेख तो थे, किन्तु उनमें अचेलता को उत्सर्ग मार्ग माना गया था। यापनीय ग्रन्थों में उदधत, अचेलता के सम्पोषक कुछ अवतरण तो वर्तमान वल्लभी वाचना के आगमों यथा आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध आदि में मिलते हैं, किन्तु कुछ अवतरण वर्तमान वाचना में नहीं हुए हैं, इसकी पुष्टी होती है। मुझे ऐसा लगता है कि वल्लभी की देवधि की वाचना का आधार माथुरी वाचना के आगम न होकर उनकी अपनी ही गुरु-परम्परा से प्राप्त आगम रहे होंगे । मेरी दृष्टि में उन्होंने नागार्जुनीय वाचना के ही पाठान्तर अपनी वाचना में समाहित किये - क्योंकि दोनों में भाषा एवं विषय-वस्तु दोनों ही दृष्टि से कम ही अन्तर था । माथुरी वाचना के आगम या तो उन्हें उपलब्ध ही नहीं थे अथवा भाषा एवं विषय-वस्तु दोनों की अपेक्षा भिन्नता होने से उन्होंने उसे आधार न बनाया हो । फिर भी देवधि को जो आगम परम्परा से प्राप्त थे, उनका और माथुरी वाचना के आगमों का मूलस्रोत तो एक ही था । हो सकता है कि कालक्रम में भाषा एवं विषय-वस्तु की अपेक्षा दोनों में क्वचित् अन्तर आ गये हों । अत: यह दृष्टिकोण भी समुचित नहीं होगा कि देवधि की वल्लभी वाचना के आगम माथुरी वाचना के आगमों से नितान्त भिन्न थे । दिगम्बर और यापनीय सम्प्रदाय का आगम साहित्य दिगम्बर और यापनीय जैन धर्म की अचेल धारा के मुख्य सम्प्रदाय रहे हैं । आज जिस आगम साहित्य की बात की जा रही है। उसका मुख्य सम्बन्ध श्वेताम्बर धारा के मूर्तिपूजक, स्थानकवासी और तेरापंथी सम्प्रदायों से रहा है। मूर्तिपूजक सम्प्रदाय १० प्रकीर्णक, जीतकल्प, पिण्डनियुक्ति और महानिशीथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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