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________________ Vol. XXXV, 2012 संस्कृत भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में जैन श्रमण परम्परा का अवदान 123 दुर्गमपदप्रबोधवृत्ति, हेमलिंगानुशासन-अवचूरि, गणपाठ, गणविवेक, गणदर्पण, प्रक्रियाग्रन्थ, हैमलघुप्रक्रिया, हैमबृहत्प्रक्रिया, हैमप्रकाश, चंद्रप्रभा, हेमशब्द-प्रक्रिया, हेमशब्दचन्द्रिका, हैमप्रक्रिया, हैमप्रक्रियाशब्दसमुच्चय, हेमशब्दसमुच्चय, हेमशब्दसंचय, हैमकारकसमुच्चय, सिद्धसारस्वत व्याकरण, उपसर्गमंडन, धातुमंजरी, मिश्रलिंगनिर्णय, लिंगानुशासन, उणादिप्रत्यय, विभक्तिविचार, धातुरत्नाकर, धातुरत्नाकरवृत्ति क्रियाकलाप, अनिट्कारिका, अनिट्कारिकाटीका, अनिट्कारिका विवरण, उणादिनाममाला, समासप्रकरण, षट्कारकविवरण, शब्दार्थचंद्रिकोद्धार, रुचादिगणविवरण, उणादिगणसूत्र, उणादिगणसूत्रवृत्ति, विश्रांतविद्याधरन्यास, पटव्यवस्थाकारिकाटीका, कातंत्रव्याकरण, दुर्गमपदप्रबोधटीका, दौर्गसिहीवृत्ति, कांतत्रोत्तरव्याकरण, कातंत्रविस्तर, बालबोधव्याकरण, कातंत्रदीपकवृत्ति, कातंत्रभूषण, वृत्तित्रयनिबंध, कातंत्रवत्ति-पंजिका. कातंत्ररूपमाला, लघवत्ति, कातंत्रविभ्रटीका, सारस्वतव्याकरण, सारस्वतमंडन, यशोनंदिनी मी, विद्वचिंतामणि, दीपिका, सारस्वतरूपमाला, क्रियाचंद्रिका, रूपरत्नमाला, धातुपाठ, धातुतरंगिणीवृत्ति, सुबोधिका, प्रक्रियावृत्तिटीका, चंद्रिका, पंचसंधि-बालावबोध, भाषाटीका, न्यायरत्नावली, पंचसंधिटीका, शब्दप्रक्रियासाधनी, सरलाभाषाटीका, सिद्धांतचंद्रिका-व्याकरण, सिद्धांतचंद्रिकाटीका, सुबोधिनीवृत्ति, अनिट्कारिका-अवचूरि, अनिट्कारिका एवं उसकी स्वोपज्ञवृत्ति, भूधातुवृत्ति, मुग्धावबोधवौक्तिक, प्राकृत व्याकरण, प्राकृतलक्षण, सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन (प्राकृतव्याकरण)वृत्ति, हैमदीपिका, दीपिका, प्राकृतदीपिका, हैमप्राकृतढुंढिका, प्राकृतबोध, प्राकृतव्याकृति, दोधकवृत्ति, हैमदोधकार्थ, प्राकृतशब्दानुशासन, प्राकृतशब्दानुशासन-वृत्ति, प्राकृत पद्यव्याकरण, औदार्यचिंतामणि, अर्धमागधी व्याकरण आदि । संस्कृत कोश साहित्य सम्बन्धी जैनाचार्यों की कृतियाँ व्याकरण के पश्चात् कोश साहित्य का क्रम आता है, जैनाचार्यो की कोष सम्बन्धी कृतियाँ निम्न है - धनंजयनाममाला, धनंजयनाममालाभाष्य, निघंटुसमय, अनेकार्थनाममाला, अनेकार्थनाममालाटीका, अभिधानचिंता मणिसारोद्धार, अभिधानचिंतामणि व्युत्पत्तिरत्नाकर, अभिधानचिंतामणिअवचूरि, अभिधानचिंतामणि रत्नप्रभा, अभिधानचिंतामणि-बीजक, अभिधानचिंतामणिनाममाला-प्रतीकावली, अनेकारर्थसंग्रह, अनेकार्थसंग्रहटीका, निघंटुशेष, निघंटुशेषटीका, देशीशब्दसंग्रह, शिलोञ्च्छकोश, शिलोञ्च्छकोशटीका, नामकोश, शब्दचंद्रिका, सुंदरप्रकाश शब्दार्णव, शब्दभेदनाममाला, शेषनाममाला, शब्दसंदोहसंग्रह, शब्दरत्नप्रदीप, विश्रवलोचनकोश, नानार्थकोश, पंचवर्गसंग्रहनाममाला, अपवर्गनाममाला, एकाक्षरी नानार्थकांड, एकाक्षरीनाममालिका, एकाक्षरकोश, एकाक्षरनाममाला आदि । इस प्रकार जैनाचार्यों ने संस्कृत में अनेक कोश ग्रन्थों की भी रचना की है। समग्र रूप से कहे तो जैनाचार्यों का संस्कृत साहित्य को विपुल एवं विराट अवदान है। प्रस्तुत आलेख में समाविष्ट विषयों के अतिरिक्त जैनाचार्यों ने अलंकारशास्त्र, छन्दशास्त्र, नाटक एवं नाट्यशास्त्र, संगीत, कला, गणित, ज्योतिष, शकुन, निमित्त, स्वप्न, चूडामणि सामुद्रिक, रमत, लक्षणशास्त्र, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, शिल्पशास्त्र, मुद्राशास्त्र, धातुविज्ञान, प्राणीविज्ञान आदि पर भी ग्रन्थ भी लिखे हैं, जिनकी चर्चा आगामी लेख में करेंगे । ०००
SR No.520785
Book TitleSambodhi 2012 Vol 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages224
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size37 MB
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