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महाकविश्री कालिदास कृत 'नवरत्नमाला'
सुरेखा पटेल
काव्यमाला सीरिज के चौथे खण्ड में अंतिम कृति महाकवि कालिदास कृत 'नवरत्नमाला'. कृति दी गई है । यह कृति एक देवी की स्तुतिरूप ग्रंथ है । इसमें सरस्वती और मातङ्गी की स्तुति की गई है।
नवरत्नमाला' के शीर्षक से ही इसका स्वरूप 'मुक्तक' द्योतित होता है। क्योंकि माला के सूत्र में विभिन्न रत्न पीरोएँ जाते हैं । रत्न अलग-अलग होते हैं। मुक्तक का श्लोक एकैव मौक्तिकवत्, एक मोती की तरह जगमगाता हुआ श्लोक, मुक्तक होता है । 'मुक्तकं नान्येनालिङ्गितम्' । मुक्तक काव्य का श्लोक अन्य श्लोक के साथ सम्बन्धित नहीं होता है क्योंकि, साहित्य के प्रबन्ध और मुक्तक दो वर्ग सर्वथा भिन्न है । स्तोत्र काव्य मुक्तक का एक प्रकार ही है, जो लघुकाव्य के रूप में पाया जाता है। यहाँ शीर्षक में 'माला' शब्द, इस काव्य को मुक्तक स्वरूप की विधा बताता है । ऐसे किसी काव्य में केवल पाँच ही श्लोक हो तो उसको 'पंचरत्न' कहा जाता है। 'नवरत्न' शब्द नव श्लोक की मर्यादा सूचित करता है और 'नक्षत्रमाला' से नक्षत्रों की सत्ताईस संख्या अभिप्रेत है। इससे सत्ताईस पदों का संकलन इस काव्य में होता है। स्तुतिकाव्य के अन्यान्य भेद में 'रत्न' नामक एक भेद हम कर सकते हैं । नवग्रह की संख्या पर से 'ग्रह' शब्द नौ संख्या सूचित करता है तो 'नवरत्नमाला' को 'ग्रहरत्नमाला' भी कह सकते हैं।
___'नवरत्नमाला' स्तोत्रकाव्य देवी सम्बन्धित है और महाकवि कालिदास की कृति मानी जाती है। स्तोत्र शब्द 'स्तु' धातु से निष्पन्न हुआ है। 'स्तूयते अनेन इति स्तोत्रम्' - जिसमें स्तुति होती है वह स्तोत्र । जिसके द्वारा भक्तिभावपूर्वक आराध्य देव-देवी की प्रार्थना की जाती है वह स्तोत्र है । किसी भी देवदेवी का स्वरूप या गुणों का काव्यमय शब्द में कीर्तन किया जाता है वह 'स्तोत्र' कहलाता है । स्तोत्र
और स्तुति को समानार्थक मानकर कवियोंने इसी प्रकार के काव्यों को स्तोत्र या स्तुति नाम दिए है । खण्डकाव्य की अत्यन्त प्रचलित विद्या है - 'स्तोत्रकाव्य' । जिसका अर्थ है ऐसा काव्य, जिसमें भक्तकवि अपनी कविता के माध्यम से अपने आराध्य की स्तुति करता है - 'स्तवः स्तोत्रं स्तुतिर्नुति ।' (अमरकोश : १/६/११) इष्ट देव की स्तुति के लिए व्यक्तिगत भावनाओं से ओतप्रोत और साहित्यिक गुणों से सुशोभित लघुकाव्य को 'स्तोत्र' काव्य कहते हैं ।
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