SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रंथ समालोचना बालाजी गणोरकर विजयचंदचरियं जैन धर्म के २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ अर्धचक्रवर्ती (नारायण), ९ (प्रतिअर्धचक्रवर्ती) (प्रतिनारायण) ९ बलदेव इस प्रकार कुल ६३ शलाकापुरुष प्रत्येक उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल के तीसरे चौथे और में उत्पन्न होते हैं। इनके अतिरिक्त अत्यंत रूपवान २ कामदेव भी उत्पन्न होते हैं । इन महानायकों में से कुछ का चरित्र जैन कवियों को अत्यंत रोचक प्रतीत हुआ फलतः उनके ऊपर अनेक काव्य कृतियों का सर्जन किया गया । प्रस्तुत ग्रंथ में पंद्रहवें कामदेव विजयचंद्र केवली के चरित्र को आलेखित किया गया है। इसे हरिचंद्र कथा भी कहा जाता है। क्योंकि इस कथानक मेंविजयचंद्र केवली अपने पुत्र हरिचंद्र के लिए अष्टविध पूजा - यथा - जल, चंदन, अक्षक, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य एवं फल के माहात्म्य आदि को आठ कथाओं के माध्यमसे वर्णित किया गया है। अंत में परिग्रह के हानिकराक परिणाम को अभिव्यक्त करने तथा - पश्चाताप से पाप की निवृत्ति का निरूपण करने वाली रसिक सुरप्रिय की कथा वर्णित की गई है। यह कृति समय में ३००० ग्रंथाय में पाई जाती है जबकि ४००० ग्रंथाग्र अर्थात् ११६३ गाथाओं वाली कृति को बृहद् रूप में माना जाता है। प्रस्तुत कृति के कर्ता खरतर गच्छ के आचार्य श्री अभयदेवसूरि • के शिष्य चंद्रप्रभ महत्तर है, प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि कर्ता ने अपने शिष्य वीरदेव की विनंति से इस कृती की रचना की वि.सं. ११२७ (ई. सन् १०७०) में की थी। सरल, सुबोध एवं मनोहर प्राकृत भाषा में निबद्ध मूल कृति को पाठांतरो सहित यथायोग्य संशोधित कर गुजराती अनुवाद के साथ पहली बार प्रकाशित किया गया है । इस अनुवाद से प्राकृत भाषा न जानने वाला वर्ग भी मात्र परमात्मा भक्ति का रसपान ही नहीं कर सकेगा बल्कि पाप से दूर रह कर नैतिक जीवन जीने के लिए भी वाचक को अभिप्रेत करेगा । प्रस्तुत प्रकाशन को विद्वद्धोग्य सहज बनाने में डॉ. जितेन्द्र बी. शाह ने साध्वी श्रीचंदनबाला म.सा. के सहयोग से कोई कमी नहीं छोड़ी है। विजयचंदचरियं, संपादक : जितेन्द्र बी. शाह, सहयोगी : साध्वी चंदनबालाश्री पृष्ठ : १२ + २०४, ई.स. २००८, मूल्य : १००, प्रकाशक : श्रुत रत्नाकर, अहमदाबाद. कुमारपालचरित्र संग्रह कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्रसूरि की निश्रा में अहिंसा का पाठ सीखने वाले चालुक्यवंशतीय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520784
Book TitleSambodhi 2011 Vol 34
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy