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Vol. XXXIII, 2010
जैनधर्म और श्रुतदेवी सरस्वती
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कच्छप के समान सस्थित चरणावली तथा अम्लान (नहीं मुझाई हुई) कोरंट की कली के समान, भगवती श्रुतदेवी मेरे मति (बुद्धि अथवा मति-अज्ञानरूपी) अन्धकार को विनष्ट करे ।
वियसियअरविंदकरा नासियतिमिरा सुयाहिया देवी ।
मझं पि देउ मेह बुहविबुहणमंसिया णिच्चं ॥ जिसके हाथ में विकसित कमल है, जिसने अज्ञानान्धकार का नाश किया है, जिसको बुध (पण्डित) और विबुधों (विशेष प्रबुद्ध) ने सदा नमस्कार किया है, ऐसी श्रुताधिष्ठात्री देवी मुझे भी बुद्धि (मेधा) प्रदान करे ।
सुयदेवयाए णमिमो जीए पसाएण सिक्खियं नाणं ।
अण्णं पवयणदेवी संतिकरी तं नमसांमि ॥ जसकी कृपा से ज्ञान सीखा है, उस श्रुतदेवता को प्रणाम करता हूँ तथा शान्ति करने वाली अन्य प्रवचनदेवी को नमस्कार करता हूँ।
सुयदेवा य जक्खो कुंभधरो बंभसंति वेरोट्टा ।
विज्जा य अंतहुंडी देउ अविग्धं लिहंतस्स ॥ श्रुतदेवता, कुम्भधरयक्ष, ब्रह्मशान्तियक्ष, वैरोटयादेवी, विद्यादेवी और अन्तहुंडीयक्ष, लेखक के लिए अविघ्न (निविघ्नता) प्रदान करे ।
___ भगवती की लिपीकार (लेखक) की इस प्रशस्ति में श्रुतदेवता से अज्ञान के विनाश तथा श्रुतलेखन कार्य की निविघ्नता की कामना की गई ।
___ यद्यपि अर्धमागधी आगम साहित्य की यह प्रशस्ति श्रुतदेवी या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के रूप में सरस्वती का उल्लेख करती है, किन्तु हमे यह स्पष्ट रूप से जान लेना चाहिए कि यह ईसा की पांचवी से दसवीं शताब्दी के मध्य हुआ है और जिनवाणी से ही श्रुत, श्रुतदेवी और सरस्वती की अवधारणाएँ विकसित हुई है।
यहाँ हमें यह भी स्पष्ट हो जाना चाहिए कि अर्धमागधी आगम साहित्य मात्र अंश उपांग आदि अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य बत्तीस या पैतालीस श्वेताम्बर परम्परा के मान्य आगम ग्रन्थों तक ही सीमित नहीं है । आगमों की नियुक्ति, भाष्य और चूर्णिया भी इसी के अन्तर्गत आती है, क्योंकि इनकी भाषा भी महाराष्ट्री प्रभावित अर्धमागधी ही है । अतः हम नियुक्ति और भाष्यों के आधार पर भी श्रुतदेवी या सरस्वती की अवधारणा पर चर्चा करेंगे ।
जहाँ तक अर्धमागधी आगमों के इस व्याख्या साहित्य का प्रश्न है, उसमें नियुक्ति साहित्य एवं भाष्य साहित्य में मंगलाचरण के रूप में हमें की भी श्रुतदेवता की स्तुति की गई हो, ऐसा उल्लेख नहीं मिला । इनमें मात्र चार सरस्वतियों के उल्लेख हैं-१. गीतरति गन्धर्व की पत्नी, २. ऋषभपुर के राजा की पत्नी, ३. सरस्वती नामक नदी और, ४. आचार्य कालक की बहन सरस्वती । किन्तु इन चारों का