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कमला गर्ग, रजनी पाण्डेय
SAMBODHI
द्वितीय-राग कल्याण, ताल सुरफाख्ता :
पांच बदन सुख सदन पांच त्रैलोचन मंडित । अरध चंद्र अरु गंग जटन् के जूट धुमंडित ।। भूषन भस्म भुजंग नाद नादेश्वर पंडित । कनक भंग में मगन अंग आनंद उमंडित ॥ बाघंबर अंबर धरे अरधांग गौरि कुंदन वरन ।
जय कीर्ति उजगार गिरि बसन्तु बुधि प्रकाश वंदित चरन ॥" सवाई प्रताप सिंह कवि होने के साथ गायन तथा नृत्य में भी निपुण थे । इस कला निष्णात नरेश को साहित्य कला संगीत में मात्र रुचि ही नहीं, पर्यापत ज्ञान भी था । उनके काल में गुणीजन खाने के संगीत विद्वानों ने संगीत का एक विशद ग्रन्थ तैयार किया था । इस विषय उसके समान विस्तुत विवेचनात्मक और बृहद ग्रन्थ हिन्दी भाषा में अन्य कोई नहीं है । यह जानकारी ब्रजनिधि ग्रन्थावलि में दी गई है । इस ग्रन्थ का नाम 'राधागोविन्द संगीत सार' है । यह मुद्रित रूप में पोथीखाना, महाराजा संग्रहालय में उपलब्ध है। इसमें मुद्रण की अशुद्धियां अवश्य हैं, किन्तु भारतीय शास्त्री संगीत के विशद विवेचन करने वाला यह ग्रन्थ अनमोल है । इसके अतिरिक्त भी संगीत विषयक अनेक ग्रन्थों को रचना इस काल में हुई । मियांचांद खां ने 'स्वरसागर' और कवि राधाकृष्ण ने 'रागरत्नाकर' नामक संगीत ग्रन्थ लिखे । ।
__सवाई प्रताप सिंह स्वयं कवि थे । भगवान की स्तुति में इन्होंने अनेकानेक पदों की रचना की। प्रतिदिन राजघराने के मंदिर 'श्री गोविन्द देवजी' में दर्शन करने पश्चात् स्वरचित पद सस्वर गाते और भाव-विभोर होकर कभी-कभी नृत्य भी कर उठते थे । प्रतापसिंह की गंधर्व बाईसी इन पदों को रागों में निबद्ध करके स्वर मय बनाती थी । गोविन्द के मंदिर तथा ब्रजनिधि के मंदिर में रास लीलाओं का आयोजन होता था । नित्य प्रति के आयोजनों में संगीत का प्रमुख स्थान होता था।
प्रताप सिंह ने राजनैतिक तथा सामाजिक दृष्टि से अशांति अराजकता तथा षड़यन्त्र कुचक्रों के काल में साहित्य संगीत कला के विकास तथा उन्नति में जो योगदान दिया वह इस काल में विरोधाभास ही था और यही जयपुर नरेशों के संगीत तथा कला प्रेम की पराकाष्ठा है।
सवाई प्रताप सिंह से पूर्व भी गुणीजन खाने का पर्याप्त विकास हुआ, किन्तु महाराजा सवाई प्रताप सिंह के शासन काल में यह अपने चरमोत्मकर्ष पर पहुंचा ।२२ १८३४ ई. में सवाई राम सिंह के राजसिंहासनारुढ़ होने के पश्चात् कला का सहज प्रवाह चरमोन्नति को प्राप्त हुआ । सवाई राम सिंह जी के समय में गुणीजन खाने में कलासिद्ध गायक कलाकारों का समूह हुआ करता था । गुणीजन खाने के तत्कालीन वरिष्ठ संगीतज्ञ, गुरु तथा जयपुर घराने की गायकी के अद्वितीय प्रतिनिधि अलादिया खां के अनुसार गुणीजन खाने के कलावंतो का पूरा विवरण इस प्रकार है
"जयपुर महाराज (रामसिंह) के पास उस जमाने में बहुत बड़ा गुणीजन खाना था । हर माह दरबार में गवैयों को एक डेढ़ लाख रुपया वेतन मिलता था । हैदर बख्श जी (दूल्ले खां जी के बेटे),