________________
प्राकृत भाषा : जितनी सहज उतनी सरल
जयपाल विद्यालंकार
प्राकृत शब्द का अर्थ है स्वाभावकि, आरम्भिक, मूल । अर्थात् जो जैसा है ठीक वैसा ही उसे प्रस्तुत कर दिया जाए उसे प्राकृत कहा जायेगा और यदि उसे सजा संवार कर प्रस्तुत किया जाए तो प्राकृत के विपरीत वह संस्कृत कहलायेगा । सम् उपसर्ग के साथ कृ धातु का प्रयोग अलंकरण, भूषण अर्थ में होता है समःसुटि से सुट् का आगम होने से संस्कार शब्द निष्पन्न होता है और इसके विपरीत जो संस्कार के बिना है संस्कार रहित है वह अपने वास्तविक मूल रूप में प्राकृत कहा जायेगा। इस प्रकार प्राकृत भाषा संस्कृत के विपरीत वह भाषा है जो सहज है, स्वाभाविक है अर्थात् जिसमें साजश्रृंगार के लिये कोई संस्कार नहीं किया गया है । प्राकृतः स्वभावः, तत्संबंधी प्राकृतः (टीका तैत्तिरीय प्रातिशाख्य) । एतद्विकारा एवान्थे, सर्वे तु प्राकृताः समाः (ऋग्वेद प्रातिशाख्य) । संस्कृत में यह साज-श्रृंगार व्याकरण की प्रक्रिया से व्याख्यात प्रकृति-प्रत्यय संयोजन-विभाग तथा स्वर-संस्कार की सहायता से किया जाता है । यास्काचार्य ने निरुक्त में निर्वचन-प्रकार का उल्लेख करते हुए कहा-तद्येषु पदेषु स्वरसंस्कारौ समर्थौ प्रादेशिकेन गुणेनान्वितौ स्यातां, तथा तानि नि यात् । निरुक्त २-१ । जिन पदों में स्वर, धातु प्रत्यय लोप आगम आदि संस्कार, उपपन्न हों अर्थात् व्याकरण शास्त्र की प्रक्रिया से अनुगत हों, उनका उसी प्रकार व्याकरण की रीति से निर्वचन करे । तात्पर्य यह है कि संस्कृत भाषा के शब्दो का संस्कार साज-श्रृंगार व्याकरण की उपर्युक्त प्रक्रिया से किया जाता है और प्राकृत भाषा इस साज-श्रृंगार के विना अपने मूल रूप में होती है। नाट्यशास्त्र में भरतमनि ने इसी बात को कहा-एतदेव हि विपर्यस्तं संस्कारगुणवर्जितम् । विज्ञेयं प्राकृतं पाठ्यं नानावस्थान्तरम् (अ.१७)। यहां यह भी समझ लेना चाहिये कि भाषा चाहे जो हो उसका व्यवहार्य स्वरूप सत्य है तथा व्याकृत अर्थात् व्याकरण की प्रक्रिया से विश्लेषण करके जो उसके शब्दों के रूप को समझाया जाता है वह विश्लेषण काल्पनिक होता है । अस्ति, भवति, पुस्तकम्, भोजनम् इत्यादि शब्दरूप सत्य हैं और अस् + शप् ( लुक्) + तिप्, पुस्त + कन्, भुज + ल्युट इत्यादि सब काल्पनिक हैं । भाष्यकार ने कहा यथा कश्चित् कुम्भकारकुलं गत्वा आह कुरु घटं कार्यमनेन करिष्ये न तथा कोपि वैय्याकरणकुलं गत्वा आह कुरु शब्दान् प्रयोक्ष इति । सामान्य लोगों के व्यवहार का माध्यम बोली होती है । व्याकरण से जब शब्दों का संस्कार करके उन्हें एक निश्चित और लगभग स्थाई रूप दे दिया जाता है तो वह बोली न रह कर भाषा हो जाती है । व्याकरण की सहायता से भाषा में प्रयुक्त पदों को