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Vol. XXXIII, 2010
यास्क एवम् पाणिनि - काल तथा विषयवस्तु का अन्तराल
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सन्दर्भ: 1. 1. After all the arguments and evidence adduced in support of both views, I think
the only reasonable conclusion that can be reached at present is, as Giridhara Sarma Caturveda remarked (in 1954), that the question of priority remains open. Panini : A Survey of Research, by Prof. George Cardona, Motilal Banarasidass, Delhi, 1980, pp.273. अथाप्यनुपपन्नार्था भवन्ति । ओषधे त्रायस्वैनम् । स्वधिते मैनं हिंसी: इत्याह हिंसन् । अथापि विप्रतिषिद्धार्था भवन्ति
। एक एव रुद्रोऽवतस्थे, न द्वितीयः । असंख्याता सहस्त्राणि ये रुद्रा अधि भूम्याम् । (निरुक्तम् 1/5) 3. तत्र नामान्याख्यातजानीति शाकटायनो नैरुक्तसमयश्च । -निरुक्तम् अ. 1 4. न सर्वाणीति गाग्र्यो, वैयाकरणानाञ्चैके। -निरुक्तम् अ. 1 5. त्रिविधा शब्दव्यवस्था - प्रत्यक्षवृत्तयः, अन्तर्लीनक्रियाः परोक्षवृत्तयः अतिपरोक्षवृत्तिषु शब्देषु निर्वचनाभ्युपायः ।
तस्मात् परोक्षवृत्तिताम् आपाद्य प्रत्यक्षवृत्तिना निर्वक्तव्याः इति प्रत्यक्षवृतिः । यस्मान्निगमयितार एते निगन्तव इति, निघण्टव इत्युच्यते ॥ निरुक्तम् - (दुर्गाचार्यस्य टीकया समेतम् - पृ. 44) सं मनसुखराय मोर, कोलकता,
1943 6. काशिकावत्तिः । (षष्ठो भागः) सं. द्वारिकाप्रसाद शास्त्री, तारा पब्लीकेशन्स, वाराणसी, 1967. पृ. 303 7. व्याकरण-महाभाष्यम् । (तृतीयो भागः) प्रकाशक - मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, 1967. पृ. 382
द्रष्टव्य :- पाणिनिय व्याकरण - तन्त्र, अर्थ और सम्भाषण सन्दर्भ । वसन्तकुमार भट्ट, एल.डी. इन्सटीट्युट
ऑफ इण्डोलोजी, अहमदावाद-2003 9. (अर्थात् पाणिनि ने आदेशात्मक व्याकरण बनाने का भी उपक्रम नहीं रखा है। ) पाणिनि के व्याकरण को
"Descriptive Generative Grammar" कहा गया है। तथा उसे prescriptive Grammar भी नहीं कहा जाता है।
सन्दर्भ-ग्रन्थ सूचि :
काशिकावृत्ति: । (षष्ठो भागः) सं. द्वारिकाप्रसाद शास्त्री, तारा पब्लीकेशन्स, वाराणसी, १९६७ निरुक्तम् – (दुर्गस्य व्याख्यया सहितम्), सं. मनसुखराय मोर, गुरुमण्डल ग्रन्थमाला १०, कलकत्ता १९५२ पाणिनीय व्याकरण - तन्त्र, अर्थ और सम्भाषण सन्दर्भ । वसन्तकुमार म. भट्ट.
एल.डी.इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलोजी, अहमदावाद - २००३ व्याकरण-महाभाष्यम् । (तृतीयो भागः), प्रकाशक - मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, १९६७ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), ले. पं. श्रीयुधिष्ठिर मीमांसक, सोनीपत,
___ (हरियाणा), चतुर्थ संस्करण, सं. २०४१ (ई.स. १९८४) Panini : A Survey of Research, by Prof. George Cardona, Motilal
Banarasidass Delhi, 1980
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