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________________ Vol. XXXII, 2009 काव्यप्रकाश-सङ्केतकार आचार्य माणिक्यचन्द्रसूरि के स्वरचित उदाहरण (द्वितीयोल्लासान्ते) सम्यक् शब्दविलास श्रीस्तेषां न स्याद्दवीयसी । परिच्युता न सङ्केताद्येषां मतिनितम्बिनी ॥ 87 ( पृ० ३१) जिनकी मति - नितम्बिनी सङ्केत से परिच्युत नहीं हुई है, समुचित शब्दविलास की लक्ष्मी उनसे दूर नहीं है । (तृतीयोल्लासान्ते) मनोवृत्ते ! भोक्तुं निबिडजडिमोग्रापि परितः परस्मै चेत्काव्याद्भुतपरिमलाय स्पृहयसि । समुद्यद्वैदग्ध्यध्वनिसुभगसर्वार्थजनने तदा सङ्केतेऽस्मिन्नवहितवती सूत्रय रतिम् ॥ ( पृ० ३७) हे मनोवृत्ते ! निबिडजडिमा (दृढमूढता) से ग्रस्त होने पर भी यदि तू काव्यरूप अद्भुत परिमल (सुगन्ध) की कामना करती है तो उल्लसित वैदग्ध्य वाले ध्वनि से सुन्दर बने सर्वार्थसाधक 'सङ्केत' में सावधान होकर प्रीति कर । भाव यह है कि जो काव्यतत्त्व को जानना चाहते हैं, उन्हें यह 'सङ्केत' अवश्य पढ़ना चाहिए । चतुर्थोल्लास में रसनिष्पति - विषयक मतों की उपस्थापना के उपरान्त आचार्य माणिक्यचन्द्र उन मतों की सारासारता को तोलते हुए, उनकी समीक्षा करते हुए कहते हैं (चतुर्थोल्लासे रसनिष्पत्ति-मतानामुपस्थापनान्ते) - न वेत्ति यस्य गाम्भीर्यं गिरितुङ्गोऽपि लोल्लट: । तत्तस्य रसपाथोधेः कथं जानातु शङ्कुकः ॥ ( पृ० ५२) पर्वत सा ऊँचा लोल्लट भी जिसकी गम्भीरता को नहीं जानता, उस रस- सागर की गम्भीरता को शङ्कुक कहाँ जान सकता है ? यहाँ शङ्कुक शब्द के वाच्यार्थ- 'छोटे शङ्कु' (कील) को ध्यान में रखते हुए यह व्यय किया है । भाव यह है कि रसनिष्पत्ति - विषयक भरतसूत्र की व्याख्या में भट्टलोल्लट द्वारा प्रस्तुत किया गया ‘उत्पत्तिवाद' व श्री शङ्कुक द्वारा प्रस्तुत 'अनुमितिवाद' यथार्थ नहीं है । भोगे रत्यादिभावानां भोगं स्वस्योचितं ब्रुवन् । सर्वथा रससर्वस्वमर्मास्पार्क्षन्न नायकः ॥ ( पृ० ५२) भट्ट नायक ने अपने अनुरूप ( नायक क्योंकि भोगप्रवण होता है, इस प्रवृत्ति के कारण ) रत्यादिभावों के भोग को रस मानते हुए रस के सर्वस्व को छुआ ही नहीं । यहाँ सङ्केतकार ने ‘नायक' शब्द पर व्यङ्ग्य करते हुए उपर्युक्त बात कही कि नायक तो प्राय: भोगप्रवण होता है, इसी प्रवृत्ति के अनुरूप भट्ट नायक ने रत्यादि भावों के भोग को रस माना है । अतः उन्होंने भी रस का स्वरूप नहीं समझा ।
SR No.520782
Book TitleSambodhi 2009 Vol 32
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, K M patel
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2009
Total Pages190
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size19 MB
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