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विजयपाल शास्त्री
SAMBODHI
प्राच्यविद्या-शोधसंस्थान व हस्तलिखित ग्रन्थालय में विद्यमान है । इसका सम्पादन मेरे द्वारा किया जा रहा है १० ।
टीका के प्रथम खण्ड में टीकाकार ने काव्य-व्याख्या प्रसङ्ग में जिन काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों को उद्धृत किया है, उनमें सर्वाधिक उद्धरण दशरूपक के हैं । इसके अनन्तर विपुलता की दृष्टि से दूसरे स्थान पर काव्यप्रकाश के उद्धरण हैं । अर्जुनरावणीय (६.१५) की टीका में अमृतानन्द योगी के अलङ्कारसंग्रह को भी उद्धृत किया है । छन्दों के निर्देश के लिए टीकाकारने वृत्तरत्नाकर के १५ से अधिक उद्धरण दिए हैं।
___ कोषों में अमरकोष के उद्धरण सर्वाधिक हैं । इन उद्धरणों की बहुलता टीका के तीनों खण्डों में समान रूप से है। इसके अतिरिक्त वैजयन्तीकोष को भी तीनों खण्डों में उद्धृत किया है। प्रथम खण्ड में एक स्थान पर केशवस्वामी के 'नानार्थार्णवसंक्षेप'१२ व एक स्थान पर आचार्य हेमचन्द्र के 'अभिधानचिन्तामणि'१३ कोष को भी उद्धृत किया है। टीका का काल
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है- टीका के प्रथम खण्ड में 'नानार्थार्णवसंक्षेप' कोष को उद्धत किया है । यह कोष 'राजेन्द्रचोल' नामक अग्रहार के निवासी छन्दोग केशवस्वामी ने चोलाधिपति राजराजदेव चोल की प्रेरणा से बनाया था । उक्त कोष के सम्पादक महामहोपाध्याय त. गणपतिशास्त्री का निर्देश माना जाए तो केशवस्वामी के आश्रयदाता राजराजदेव का काल ईस्वीय तेरहवीं शताब्दी का उत्तरभाग होना चाहिए१४ । अतः 'नानार्णवसंक्षेप' को उद्धृत करने वाले टीकाकार ईस्वीय चौदहवीं शताब्दी से पूर्ववर्ती नहीं है, इतना स्पष्ट है । अमृतानन्द योगी द्वारा रचित अलङ्कारसंग्रह का भी एक उद्धरण टीका में उद्धृत है, ऐसा ऊपर बताया जा चुका है। अमृतानन्द योगी का समय सी०कुन्हन राजा ने ईस्वीय चौदहवीं शती के उत्तरार्ध का आरम्भिक भाग माना है१५ । अतः अलङ्कारसंग्रह को उद्धृत करनेवाले टीकाकार का समय हमारे अनुमान से ईस्वीय पन्द्रहवीं शताब्दी होना चाहिए । इसकी पुष्टि के लिए अभी और भी गवेषणा की आवश्यकता है । टीका का यह अनुमानित काल ही 'वासुदेव-विजयम्' के रचयिता वासुदेव कवि का भी माना जाता है । अतः दोनों के अभिन्न होने की सम्भावना के पीछे एक कारण यह भी है । टीकाकार का वैदुष्य
____टीका के प्रथम खण्ड से विदित होता है कि टीकाकार सेव्यशिवदेशिक-शिष्य कोष, व्याकरण, अलङ्कार, नीतिशास्त्र, रामायण, महाभारत, पुराण, योगशास्त्र, ज्यौतिष, आयुर्वेद आदि में निष्णात विद्वान् था।
कामन्दकीय नीतिसार, अमरकोष, दैवम्, निपाताव्ययोपसर्गीय, अष्टाङ्गसंग्रह, अष्टाङ्गहृदय आदि ग्रन्थों के उद्धरणों की बहुलता से विदित होता है कि टीकाकार व्याकरण के साथ काव्य, कोष, आयुर्वेद, नीतिशास्त्र आदि का प्रौढ विद्वान् था । व्याख्या में अलङ्कार, ध्वनि नायक-नायिका आदि के