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________________ Vol. XXXI, 2007 गुजरात के चौलुक्य - सोलंकी कालीन अभिलेखों में... 87 और वस्तुपाल-तेजपाल दर्शन हेतु ये चारों हस्तिन्यारूढ है । उनके बायें और दायें उनकी सात बहनों की नामोल्लेख सहित मूर्तियाँ करवायी । (श्लो० १४-२३) इन कौटुम्बिक व्यक्तियों में मंत्रीयों के पूर्वजो, भ्राताओं अपनी पत्नी-पुत्रों सहित सब समाविष्ट किये गये हैं । ___ मंत्रीओ के कुल पूर्वजों के पहले उनके स्वामी 'चौलुक्य कुल की दुसरी शाखा' कहते हैं । उसका नामान्तर न बताते हुए 'चौलुक्य' कहते हैं और उसमें अर्णोराज-→ लावणप्रसाद→ वीरधवल के परिचय देते हुए लिखा गया है कि वीरधवल के सौधांगणमें अश्वों-हाथी के समूह जीतकर मंत्रीने अर्पण करने के लिये बांधे गये थे। (श्लो० २५-२७) विषयान्तर के लिये 'इतश्च' कहकर हिमालय के पुत्र अर्बुद में श्रेष्ठ वसिष्ठ कुल के यज्ञ कुंड में से परमार वंश की उत्पत्ति बताकर उस वंश की राजपरंपरा उनके पराक्रमों या विशेषताओं के साथ वर्णन किया गया है । ( श्लो० ३०-४२) वसिष्ठ कुल के 'परमार' वंश के श्री धूमराज इन्द्र जैसा पराक्रमी था (श्लो० ३३) । उसके बाद धंधुक, ध्रुवभट (श्लो० ३४) इत्यादि राजाओ शत्रुरूप हाथी के समूह को पराजित करनेवाले हुवों । रामदेव नामक सुंदर और कामदेव को जीतनेवाला पुत्र इसी कुल में हुआ । उसके पुत्र यशोधवलने चौलुक्य कुमारपाल प्रति आक्रमण करते हुए मालवपति को जल्दी से रोका, बल्लाल को आलब्धवान् = पकडा था ६ । जो गुजरेश्वर कुमारपाल का सामन्त था । यशोधवल के पुत्र धारावर्षने कोंकण नरेश की संपत्ति ग्रहण की और उसकी पत्नीओं को रुलवायी । यह राजा का नाम मल्लिकार्जुन था। इस राजाओं का वंशवृत्त और पराक्रमों के बारे में चर्चा करते हुए सभी इतिहासविदोंने सोमेश्वर के इन श्लो० ३२-३९ श्लोकों, 'सुरथोत्सव' के अंतिम सर्ग के कुछ श्लोकों एवं 'कीर्तिकौमुदी' के द्वितीय सर्ग के श्लोकों का मुख्यतया आधार लिया है यही कवि की महत्ता है; और विशेषता यह कि सभी श्लोकों अन्योन्य पूरक बने है कहीं पुनरावृत्ति नहीं । धारावर्ष के पराक्रमों (श्लो० ३६-३९) के बाद उसका छोटा भाई प्रह्लादनदेव था। जो पाल्हनपुर (उ०-गुज०) का स्थापक और सोमेश्वरदेव के पिता कुमार(२) का गुरु था। उसकी तलवारने श्री गुजरेश्वर (अजयपाल) को सामंतसिंह के साथ के युद्ध में रक्षण किया था और अपने कुल को उत्तम चारित्रसे उजागर किया था । जैसे भक्त प्रह्लादने किया । (श्लो० ३८)। धारावर्ष के पुत्र श्री सोमदेव ने पिता का शौर्य और विद्या तथा काका की दानशीलता ग्रहण की, राजा के कर से ब्राह्मणों को मुक्ति दिलायी और शत्रुओं को जीतकर अपनी समृद्धि और गौरव बढाया। उसका पुत्र सोमसिंह और उसका पुत्र कृष्णराज यशस्वी और पराक्रमी राजा हुए । (श्लो० ३९-४२) यह सोमसिंह भीमदेव का सामन्त था, जिसने तेजपाल को अर्बुद गिरि पर नेमिनाथ प्रासाद बनाने की अनुमति दी और एक गाँव भेट-दान दिया था । यहाँ तक सोमेश्वरने अपने समयतक की बात करके छोड दिया । और मंत्री वस्तुपाल-तेजपाल का जो परिचय कीर्तिकौमुदी में बाकी रखा वही बात यहाँ कुछ श्लोकों में की है। मंत्रीओं की सात बहने, गुरुपरंपरा इत्यादि और प्राग्वाटवंश की परंपरा, उनके गुण-पराक्रमों की कुछ विशेषता, इष्टापूर्तो का निरूपण किया है । इस सिद्धहस्त कवि के कुछ श्लोक उसकी अन्य कृतियों और प्रबन्धो में भी उल्लिखित हैं ।१० फिर भी सामान्य तया उसकी कोइ कृति में विषय या श्लोक का पुनरावर्तन या अतिशय विस्तार के दोष नहीं है । आबु के परमार राजा यशोधवल गुजरेश्वर कुमारपाल
SR No.520781
Book TitleSambodhi 2007 Vol 31
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages168
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size21 MB
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