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________________ मनसुख मोलिया SAMBODHI यीर्भुजङ्गप्रयातम् ॥ छन्दोऽनुशासनम्, २.१७० यीरिति चत्वारो यगणाः । यथान सूरिः सुराणां गुरुर्नासुराणां पुराणां रिपुर्नापि नापि स्वयम्भूः । खला एव विज्ञाश्चरित्रे खलानां भुजङ्गप्रयातं भुजङ्गा विदन्ति ॥ २.१७०.१ अप्रमेयेति भरतः ॥२१७०.१ पिङ्गलाचार्य ने अपने छन्दःशास्त्र में सूत्रशैली का प्रयोग किया है । पिङ्गल के परवर्ती आचार्यों ने सूत्रशैली का त्याग करके नई शैली का आविष्कार किया है, जिसमें छन्द का लक्षण स्वयं ही छन्द का लक्ष्य बन जाता है। छन्द के लघु-गुरु वर्णस्वरूप के अनुसार एक पाद में छन्द का लक्षण प्रस्तुत किया जाता है, जैसे "उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ ग:"२ इत्यादि । जयदेव, जयकीर्ति, केदार भट्ट आदि आचार्यों ने इस शैली को प्रचलित किया है। लेकिन हेमचन्द्राचार्य ने अपने पूर्ववर्ती आचार्यों से अलग होकर सूत्रशैली को पुनर्जीवित किया है। केवल सूत्र रचना से संतुष्ट न होकर उन्होंने 'छन्दश्चूडामणि' नामक स्वोपज्ञ वृत्ति और उदाहरण के पद्यों की रचना भी की है। हेमचन्द्राचार्य की यह सूत्र शैली अत्यन्त लाघवपूर्ण और पिङ्गलाचार्य की शैली से भी अधिक परिष्कृत है। इसकी कुछ विशेषताएँ ध्यानार्ह हैं । जैसे कि, (१) हेमचन्द्राचार्य गणनिर्देश के लिए पिङ्गलप्रयुक्त 'मयरसतजभन' अष्टगण को स्वीकार करते हैं, लेकिन गणसंख्या के निर्देश के लिए स्वर प्रयोग की योजना करते हैं । गण के अक्षर में प्रयुक्त स्वर गणसंख्या का वाचक बनता है । अ, आ, इ, ई आदि स्वर क्रमशः एक, दो, तीन, चार आदि संख्या का बोध कराते हैं । तदनुसार यदि चार म गण का प्रयोग करना है तो म् में चौथा स्वर ई मिलाकर मी संज्ञा प्रयुक्त होगी। इस प्रयुक्ति से सूत्रों में लाघव सिद्ध हुआ है । 'शशिकला' छन्द में पन्द्रह अक्षर और 'ननननस' गणविधान होता है । चार न गण के लिए हेमचन्द्राचार्य ने नी संज्ञा का प्रयोग करके सूत्र को अतिसंक्षिप्त रूप दिया है, जैसे नीसौ शशिकला । यह प्रयुक्ति विदुषी, तोटक' आदि कई छन्दों में पाई जाती है। (२) सूत्रशैली में लाघव सिद्धि के लिए हेमचन्द्राचार्य ने दूसरी प्रयुक्ति का प्रयोग यतिनिर्देश के लिए किया है। पूर्ववर्ती आचार्य यतिविधान के लिए विविध प्रतीकों का प्रयोग करते थे । जैसे चार के लिए वेद, समुद्र, युग इत्यादि, पाँच के लिए इन्द्रिय, प्राण, भूत, बाण इत्यादि । लेकिन हेमचन्द्राचार्य ने वर्णमाला के व्यञ्जनों का उपयोग करके यति का निर्देश किया है। क्, ख, ग, घ, ङ् आदि वर्ण क्रमशः एक, दो, तीन, चार, पाँच आदि अक्षरों के स्थान पर यति के बोधक हैं। सत्रह अक्षर के मन्दाक्रान्ता छन्द में पाद के बीच चार और छ: अक्षरों के बाद यति है। सूत्र में चार के लिए घ और छ: के लिए च संज्ञा के प्रयोग से छन्द का लक्षण दिया गया है, "मो भनौ तौ गौ मन्दाक्रान्ता घचैः।"८ इस तरह शालिनी, पुट,१० प्रहर्षिणी' आदि छन्दों के उदाहरण द्रष्टव्य हैं ।
SR No.520781
Book TitleSambodhi 2007 Vol 31
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages168
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size21 MB
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