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________________ Vol. xxx, 2006 पाण्डुलिपियों और लिपिविज्ञान की अग्रीम कार्यशाला का अहेवाल पा 245 ब्राह्मीलिपि संसार की सबसे प्राचीन लिपि है। इसमें समग्रता है। आपने श्रीलंका के १२ वी शता० का एक दशक पूर्व प्राप्त अभिलेख का जिक्र भी किया। तथा विश्वभर की लिपि का नामोल्लेख किया। डॉ० निगम का स्वागत व परिचय संस्था के नियामक डॉ० जे०बी० शाह ने किया। ८ जून, २००७ : ___डॉ० श्याम सुन्दर निगम ने ब्राह्मीलिपि के उद्गम विषय पर व्याख्यान दिया जिसमें आपने भारतीय तथा भारतेतर मनीषियों द्वारा परामृष्ट विचारों को समझाया । वे नाम इस प्रकार हैं-जेम्सप्रिंसेप, कनिधम, मेक्समूलर, बर्नेल, ब्यूलर, डेविड गिरिजर, बेबर, हेलेनी तथा गिकी (टिकी) । आपने स्वदेशी उत्पति का सिद्धान्त भी बताया (१) हिन्दुस्तान से यह लिपि है । (२) द्रविड से है-(एडवर्ड थामस) (३) आर्म हैकनिधंम. डाडसनलेसेन । डॉ० जे० बी० शाह ने Jain Manuscript Treasure of the Brithish Library के कतिपय सचित्रहस्तप्रत के बारे में चर्चा की । जिसमें कल्पसूत्र के संशोधक चिह्नों का यथास्थिति उद्घाटन किया । आपने चित्रों में उपलब्ध भगवान महावीर के एकादश शिष्यों के चित्रों को सव्याख्यान व्याख्यायित किया । आपने संशोधन पद्धति के विषय में भी संक्षेप में चर्चा की। ९ जून, २००७ : डॉ० श्यामसुन्दर निगम ने ब्राह्मी लिपि के स्वर, व्यञ्जन, वर्णमाला का लेखन कर प्रतिभागियों को मात्राओं के स्वरूप को प्रकाशित किया । आपने प्रत्येक प्रतिभागियों को श्यामपट्ट पर बुलाकर ब्राह्मी के वर्गों में मात्राप्रयोग करवाया । तत्पश्चात् भारतीय लिपियों का वर्गीकरण किया जिसमें क्षेत्रीयलिपि, प्रांतीयलिपि, जातीयलिपि, साम्प्रदायिकलिपि, चित्रात्मकलिपि, संकेतलिपि तथा लिपियों की शैलियोंउत्क्षेप, निक्षेप, प्रक्षेप आदि की भी चर्चा की। डॉ० प्रीति पञ्चोली ने देवनागरी लिपि के लिप्यन्तरण के नियमों को सभी प्रतिभागियों को बताया। डॉ० के० बी० शाह, निवृत्त प्राध्यापक, गुजराती साहित्य, अहमदाबाद ने मध्यकालीन गुजराती साहित्य का पाठ-समीक्षा विषय पर अपना व्याख्यान दिया । जिसमें पदच्छेद, पाठनिर्धारण आदि तत्त्वों को स्पर्श किया। १० जून, २००७ : डॉ० श्यामसुन्दर निगम ने ब्राह्मीलिपि के अभिलेख का लिप्यन्तरण प्रतिभागियों से करवाया और ब्राह्मीलिपि के विकास की यात्रा बताई । गुप्तकालीन ब्राह्मी के प्रवाह द्वारा उत्तरभारतीय तथा दक्षिण भारतीय को भी व्याख्यायित किया। डॉ० के० बी० शाह ने 'हस्तप्रत सम्पादन की प्रक्रिया' विषय पर प्रवचन देते हुए हस्तप्रत संशोधन के नियमों पर विस्तार से चर्चा की। डॉ० जे० बी० शाह ने 'संशोधन पद्धति के नियम' विषय पर चर्चा करते हुए हस्तप्रत में उपलब्ध होनेवाले सांकेतिक चिह्नों का तात्पर्य और उपयोगी तथ्यों को प्रकाशित किया। आपने जैनागम के संशोधन के उपादेय नियमों पर विशेषरूप से चर्चा की।
SR No.520780
Book TitleSambodhi 2006 Vol 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah, N M Kansara
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size23 MB
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